कभी सुना था ऐसा लफड़ा, गुल का है बुलबुल से झगड़ा,
कमजोरों को मार रहे क्यों, उससे निपटो जो है तगड़ा….पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपनी शायरी से खास पहचान बनाने वाले मशहूर शायर आकिल जौनपुरी के निधन से इस क्षेत्र की गंगाजमुनी तहजीब से जुड़ा एक बड़ा नाम ढह गया. उनके निधन का समाचार सुनते ही साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई. आकिल की हिदी व उर्दू दोनों ही भाषाओं पर उम्दा पकड़ थी. वह
अपने दौर के मशहूर शायर कामिल शफीकी के पुत्र भर नहीं बल्कि सही मायनों में उनके उत्तराधिकारी थे. साहित्यिक सृजन के अलावा मंच संचालन में भी उन्हें महारथ हासिल थी. कोशिश संस्था द्वारा उन्हें आजीवन उपलब्धि सम्मान से सम्मानित भी किया गया था. आकिल जौनपुरी ने कई पुस्तकों की रचना एवं संपादन भी किया और कई अखबारों से भी जुड़े रहे.
क्षेत्र की अलग अलग वर्गों व साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े लोगों ने उन्हें शिद्दत से याद किया. उनकी इस यादगार शेर की चर्चा चहुंओर थी. 'ये भी तो जुल्मों सितम का तोड़ है, तीर खाकर मुस्कुराना चाहिए, वो नागिन इसलिए भी है परेशा, जिसे देखो सपेरा हो गया है. शायर आकिल को श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में कोशिश संस्था के प्रो आर एन सिंह, प्रो अनूप वशिष्ठ, डॉ पीसी विश्वकर्मा, गिरीश कुमार श्रीवास्तव, अशोक मिश्रा, प्रखर, अनिल उपाध्याय, विमला सिंह, अमृत प्रकाश, रामजीत मिश्रा, मोनिस जौनपुरी, असीम मछली शहरी, जनार्दन प्रसाद, पाषाण एवं पारुल आदि शामिल थी. इन सबने उन्हें एक जीवंत शायर और इंसानियत का प्रतीक बताया. साहित्य के संवर्धन एवं सांप्रदायिक एकता के लिए उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा. अखिल भारतीय काव्य मंच की ओर से आयोजित श्रद्धांजलि सभा में संस्थापक डॉ प्रमोद वाचस्पति, सलिल जौनपुरी, असीम मछली शहरी, फूलचन्द भारती, डॉ पीसी विश्वकर्मा, प्रेम जौनपुरी, कैशर जौनपुरी, आदर्श कुमार, डॉ राम सिंगार शुक्ल गदेला, अजय पाण्डेय, संजय अस्थाना, रामजी जायसवाल आदि शामिल थे.