पटना: मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा), बिहार ने संत कबीर दास की जयंती मनाई। हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष कवि सत्यनारायण इस मौके पर कहा " कबीर उस दौर के अकेले कवि थे जिनके विरोध का स्वर बहुत तेज था। उनमें प्रतिरोध का स्वर बहुत मुखर है।" निदेशक इम्तेयाज़ अहमद करीमी ने कबीर के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए हुए उनके साहित्य की प्रासंगिकता को रेखांकित किया।
बी.एन. मंडल, विश्वविद्यालय, मधेपुरा के पूर्व कुलपति डॉ अमरनाथ सिन्हा ने कहा " कबीर दास की वाणी वह लता है जो योग के क्षेत्र में भक्ति का बीज पड़ने से अंकुरित हुई थी। उन दिनों उत्तर के हठयोगियों और दक्षिण के भक्तों में मौलिक अंतर था। एक टूट जाता था पर झुकता न था, दूसरा झुक जाता था और टूटता न था। कबीर अक्खड़ थे। उन्होंने अपनी अक्खड़ता योगियों से विरासत में पाई थी। वे सत्य के जिज्ञासु थे और कोई मोह ममता उन्हें मार्ग आए विचलित नहीं कर सकती थी।"
चर्चित शायर कासिम खुर्शीद ने अपने संबोधन में कहा " जो इश्क का मतवाला है वह दुनिया के माप-जोख से अपनी सफलता का हिसाब नहीं रखता। कबीर जैसे फक्कड़ को दुनिया की होशियारी से क्या वास्ता? कबीर किसी के धोखे में आने वाले न थे। दिल जम गया तो ठीक है न जमा तो राम-राम कर आगे चल दिये।" कासिम खुर्शीद ने अंत में कहा कि " दरअसल जिस के अंदर फ़क़ीरी व्याप्त रहती है वो हमेशा प्रासंगिक रहता है, जैसे कबीर। कार्यक्रम के दूसरे भाग में एक लघु काव्य गोष्ठी हुई जिसमें वरिष्ठ कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी, पूनम सिन्हा श्रेयसी, युवा कवि कुंदन आनंद और मन्नू राय ने अपनी प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया।
बी.एड कॉलेज फुलवारी शरीफ की व्याख्याता निशा परासर ने कबीर गायन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम को सविता सिंह नेपाली ने भी संबोधित किया। इस मौके पर पर कुछ विद्यार्थियों ने भी अपने विचार प्रकट किए जिनमें करुणा मिश्रा, अमित मिश्रा, शिवनंदन कुमार और दीपक कुमार राय प्रमुख हैं। धन्यवाद ज्ञापन अनिल कुमार लाल और मंच संचालन डॉ प्रमोद कुँवर और विजय प्रकाश ने किया।