नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने 'साहित्य मंच' कार्यक्रम के अंतर्गत वरिष्ठ लेखक मृत्युंजय उपाध्याय ने 'कबीर की प्रासंगिकता' पर विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि कबीर मध्यकालीन परंपरा के कवि हैं और अपने समय के सबसे बड़े समाज सुधारक भी हैं. उनकी चेतना जनचेतना थी. कबीर ने अपने समय में फैले धार्मिक आडम्बरों का विरोध तो किया ही बल्कि जात-पात की कुरीतियों का भी विरोध किया, इसी कारण उन्होंने हिंदू और मुसलमानों की कुरीतियों पर निर्भीक होकर कहा. उन्होंने कबीर की एक ईश्वर की अवधारणा को समझाते हुए कहा कि यह एक ऐसी पहल थी, जिससे उस समय के विभाजित समाज को एक सूत्र में पिरोया जा सकता था, मृत्युंजय उपाध्याय ने कबीर के लिखे कई दोहों और सबद के उदाहरण देकर स्पष्ट किया कि सगुण और निर्गुण में कोई भेद नहीं है. दोनों की मूल चेतना एक ही है. उन्होंने अपनी वाणी में हमेशा आम आदमी या कहें शोषित समाज की बात ही कही. समाज के वैमनस्य को दूर करना उनका महत्त्वपूर्ण लक्ष्य था.
कार्यक्रम के प्रारंभ में साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने पुस्तक भेंट कर उनका स्वागत करते हुए कहा कि कबीर की प्रासंगिकता आज भी हमारे बीच बनी हुई है, उसका मुख्य कारण यह है कि उनका लेखन कालातीत है. उनके विचार आज भी एक संतुलित समाज के लिए बेहद आवश्यक हैं. इस अवसर पर साहित्य अकादमी के हिंदी परामर्श मंडल एवं सामान्य परिषद् के सदस्य व केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष कमलकिशोर गोयनका, भारतीय साहित्यकार संगठन की महासचिव कुमुद शर्मा, आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव शिव शंकर अवस्थी, साहित्यिक डॉट कॉम के संपादक संजीव सिन्हा, सुलभ-साहित्य-अकादमी के उपाध्यक्ष अशोक कुमार ज्योति ने भी मृत्युंजय उपाध्याय का स्वागत किया. मृत्युंजय उपाध्याय के वक्तव्य के बाद कमलकिशोर गोयनका, कुमुद शर्मा, अशोक कुमार ज्योति आदि ने उनके वक्तव्य पर संक्षिप्त टिप्पणी की. मृत्युंजय उपाध्याय ने श्रोताओं द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर भी दिए. साहित्य अकादमी की सामान्य परिषद् एवं हिंदी परामर्श मंडल के सदस्य अरुण कुमार भगत ने धन्यवाद ज्ञापन किया. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने किया. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लेखक, छात्र एवं पत्रकार उपस्थित थे.