नई दिल्लीः उन्हें उपन्यास सम्राट कहें या आधुनिक हिंदी कहानी के जनक मुंशी प्रेमचंद की लोकप्रियता भाषा और देश के पार है. शायद यही वजह है कि उनके जन्मदिन पर सोशल मीडिया, फेसबुक और ट्वीटर पर उन्हें हर आम और खास की ओर से बधाई देने की बाढ़ सी आ गई. राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने ट्वीट किया, ‘ मुंशी प्रेमचंद के जन्म-दिवस पर आज एक ऐसे श्रेष्ठ लेखक और उपन्यासकार की स्मृति ताज़ा हुई है जो अपनी मर्म-स्पर्शी कहानियों में किसानों, ग़रीबों और जन-सामान्य की असाधारण भावनाओं का चित्रण करके अमर हो गए.‘ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ट्वीटर पर लिखा, ‘गोदान, गबन और रंगभूमि जैसे कई प्रसिद्ध उपन्यासों के रचयिता “उपन्यास सम्राट” मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि.‘
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम अजायबराय और माता का नाम आनंदी देवी था. पिता लमही गांव में ही डाकघर के मुंशी थे. मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था. उनका एक नाम नवाब राय भी था. उनका बचपन काफी कष्टमय बिता, जिसकी छाप उनकी रचनाओं में भी दिखती है. वह महज सात साल के थे कि इनकी माता का देहांत हो गया. पिता का स्थानांतरण गोरखपुर हो गया, जहां उन्होंने दूसरी शादी कर ली. प्रेमचंद को अपनी दूसरी मां से कभी सगी मां जैसा प्यार नहीं मिला. वह चौदह साल के ही थे कि पिताजी का भी देहांत हो गया.
पंद्रह वर्ष की आयु में ही इनका बाल विवाह हो गया, वह भी सफल नहीं रहा. आर्य समाज के प्रभाव में आने के बाद इन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया और शिवरानी देवी के साथ शादी कर ली, जिनसे इनकी तीन संतानें हुईं. दो बेटे श्रीपतराय, अमृत राय और बेटी कमला देवी. बचपन से ही लिखने का शौक रखने वाले प्रेमचंद ने कभी हार नहीम मानी और तमाम कालजयी रचनाएं दीं, जो आधुनिक हिंदी की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में शुमार हैं. लेखन के प्रति मुंशी जी के लगाव का आलम यह था कि जीवन के आखिरी क्षणों में भी इन्होने अपना लेखन कार्य जारी रखा. कहते हैं लंबी बीमारी से 8 अक्टूबर, 1936 को मृत्यु से पहले तक वह अपने उपन्यास ‘मंगलसूत्र‘ को लिख रहे थे. उनकी मृत्यु के बाद उनके इस उपन्यास को पुत्र अमृतराय ने पूरा किया.
प्रेमचंद के लेखन की पहली शुरुआत 1901 में हुई. हिंदी और उर्दू भाषा पर उनका विशेष अधिकार था. उनके कहानी संग्रह ‘सोजे वतन‘ यानी देश का दर्द 1908 में सामने आया. देशभक्ति से प्रेरित इस उपन्यास पर अंग्रेज सरकार भड़क गई और उसने इसके प्रकाशन पर रोक लगा दी. मुंशी जी ने अपना नाम बदलकर लेखन कार्य जारी रखा. दयानारायण निगम ने उन्हें ‘प्रेमचंद’ के नाम से संबोधित किया. बचपन से ही वकील बनने की चाहत रखने वाले प्रेमचंद ने कभी भी गरीबी के चलते अपनी साहित्यिक रूचि को पीछे नहीं छोड़ा. गांधीजी के आह्वान पर उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और 1930 में बनारस शहर से अपनी मासिक पत्रिका ‘हंस‘ की शुरुआत की. 1934 में वे मुंबई चले गए जहां फिल्म ‘मजदूर’ के लिए कहानी लिखी. पर मुंबई का शहरी जीवन उन्हें पसंद नहीं आया और वह बनारस को लौट आए.
प्रेमचंद पहले भारतीय लेखक थे जिन्होंने यथार्थ और तत्कालीन समाज में पल रही कुरूतियों के खिलाफ लेखनी चलाई. उनके कहानी और उपन्यास इतने सजीव थे कि उन्हें पढ़कर लगता है जैसे ये कथाएं हमारे आसपास की ही हैं. उनसे पहले भारतीय लेखन का आधार पौराणिक, धार्मिक और काल्पनिक हुआ करता था. मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवन में तीन सौ से अधिक कहानियां, 15 उपन्यास, 3 नाटक, 7 से अधिक बाल पुस्तकें लिखीं और अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया, जिन्होंने जनमानस और भारतीय साहित्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी.
जागरण हिंदी की ओर से साहित्य को समृद्ध करने वाले, कलम के धनी, कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद को 138वीं जयंती पर कोटि-कोटि नमन, भावभीनी श्रद्धांजलि!