नई दिल्लीः गांधी शांति प्रतिष्ठान में 'कथा-कहानी' की ओर से एक गोष्ठी का आयोजन किया गया. इस गोष्ठी में मधुसूदन आनंद ने अपनी कहानी 'बुद्धा', प्रियदर्शन ने अपनी कहानी 'अदृश्य लोग' व आकांक्षा पारे काशिव ने अपनी कहानी 'नीम हकीम' का पाठ किया. गोष्ठी का आरंभ करते हुए 'कथा-कहानी' के संयोजक हरियश राय ने कहा कि हमारा मकसद इस दौर में लिखी जा रही उन कहानियों को रेखांकिंत करना है, जिनमें हमारा समय और समय के अंतर्विरोधों की गूंज हो. कहानी पाठ के बाद प्रबुद्ध श्रोताओं ने इन पर अपने मत भी रखे. योगेन्द्र आहूजा ने कहा कि आकांक्षा पारे की कहानियों के शीर्षक आकर्षक ही नहीं वरन खुद में एक मुकम्मल कहानी होते हैं. प्रियदर्शन की कहानी के बारे में उनका मानना था कि यह कहानी हममें से बहुत सारे लोगों की कहानी है, जो देखकर भी नहीं देखते. मधुसूदन आनंद की कहानी पर उनकी टिप्पणी थी कि इस कहानी में तमाम परतें और तहें हैं. यह उन प्रवासियों की कहानी है, जिनके लिए बुद्धा के मायने बुद्ध या उनके संदेश नहीं बल्कि एक प्रतिमा है और जिनके लिए बुद्ध केवल एक सजावटी आइटम हैं. कथन पत्रिका की संपादक संज्ञा उपाध्याय ने इन कहानियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मधुसूदन की कहानी एक मुकम्मल कहानी है, क्योंकि चीजें जहां शुरु होती हैं उससे आगे बढ़कर एक अंत तक पहुंचती हैं. प्रियदर्शन की कहानी पर उनका मत था कि प्रियदर्शन सामाजिक सरोकार वाले कहानीकार हैं और उनकी कहानियां रोजमर्रा के सवालों को सामने रखती हैं. आकांक्षा पारे की कहानी में हास्यास्पद ढंग से स्थितियों को उभारा गया है.
शंकर ने इन कहानियों पर अपना मत रखते हुए कहा कि मधुसूदन आनंद की कहानी जर्मनी में घटित होती है, जहां दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हुई थी. वहां बुद्ध की चर्चा का मतलब शांति की चर्चा से है. कहानी में बुद्ध के माध्यम से युद्ध और साम्राज्यवाद का निषेध किया गया है. आकांक्षा पारे की कहानी की ताकत इसका खिलंदड़ापन है, जबकि प्रियदर्शन की कहानी में दो स्थितियां एक साथ चलती हैं. एक स्थिति है दलितों की, उनके शोषण की और दूसरी स्थिति एक मध्यवर्गीय व्यक्ति की. रमेश उपाध्याय ने अपनी टिप्पणी में कहा कि तीनों कहानियां अलग होते हुए भी एक बिंदु पर समान हैं, वह है व्यंग्य का प्रयोग. संजीव कुमार ने कहा कि आकांक्षा पारे की कहानी में पोंगापंथी की आलोचना ही उसकी ताकत है. प्रियदर्शन की कहानी हम सब लोगों की कहानी है, जो अजीब तरह के स्पेस में हैं. प्रियदर्शन की कहानी के बारे में नूर जहीर का मानना था कि यह कहानी एक डर की कहानी है. मधुसूदन आनंद की कहानी बताती है कि बुद्ध की मूर्ति दिए जाने पर लोग मुकम्मल और कुटिल हो जाते हैं. सुधांशु गुप्ता का मानना था कि प्रियदर्शन की कहानी पर व्यावसायिक मजबूरियां हाबी हैं और मधुसूदन आनंद की कहानी मनोज के अपराध बोध की कहानी है. राजकमल ने कहा कि प्रियदर्शन की कहानी में वे अनदेखे लोग हैं, जो उच्च मध्यवर्गीय घरों में दिखाई देते हैं जिन्हें हम नजरअंदाज करते हैं. मधुसूदन आनंद की कहानी प्रवासियों की जीवन शैली की कहानी है. अंजु शर्मा का मानना था कि आकांक्षा पारे की कहानी एक खास शिल्प की कहानी है. प्रियदर्शन की कहानी अनुपस्थित चीजों को उपस्थित करती है और मधुसूदन की कहानी जीवन के ठहराव की कहानी है. इस गोष्ठी में हीरालाल नागर, महेश दर्पण, सुभाष अखिल, वंदना गुप्ता, अंजलि देश पांडे, सुमति सक्सेना लाल ने भी अपने विचार व्यक्त किए.