नई दिल्लीः कथा-कहानी की मासिक गोष्ठी गांधी शांति प्रतिष्ठान में हुई, जिसमें कथाकार पंकज बिष्ट ने अपनी कहानी 'ऐसी जगह' व सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने अपनी कहानी 'प्रीमियम' का पाठ किया. इन कहानियों पर टिप्पणी करते हुए आलोचक संजीव कुमार ने कहा कि कहानी वह है जो अपने समय के बड़े सवालों को उठाती है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी है कि सवालों का बड़ा होना कौन तय करता है? क्या कोई दर्शन, कोई विचारधारा, कोई पार्टी लाइन सवालों का बड़ा होना तय करती है? उन्होंने कहा कि पंकज बिष्ट की कहानी असाधारण होने की झलक देती है, तो सत्येन्द्र श्रीवास्तव की कहानी तार्किकता से आगे बढ़ती है और इसमें टाइम और स्पेस की यूनिटी है. पूरी कहानी गठी हुई है. कहीं भी बंटती नहीं है. एक समय में पूरी की पूरी कहानी खत्म होती है. सविता सिंह ने पंकज बिष्ट की कहानी को डिस्टर्ब करने वाली कहानी बताया तो रमेश उपाध्याय ने सत्येन्द्र श्रीवास्तव की कहानी को शुरू से आखिर तक एक चिंता की कहानी बताया.
इन दोनों कहानियों पर टिप्पणी करते हुए रामशरण जोशी ने गालिब का एक शेर उद्धृत किया कि 'हो चुकी गालिब बलाएं सब तमाम, एक मर्ग-ए –नागहानी और है.' उन्होंने कहा कि ये दोनों कहानियां पोलिटिकल इकॉनमी को व्यक्त करती हैं. उन्होंने कहा कि मूर्त साहित्य वह है जो अपने समय की व्यवस्था के विरुद्ध एक प्रतिरोध का रूपक गढ़े . ये दोनों कहानियां अमानवीकरण व अलगाव की कहानियां हैं. दोनों कहानियां अलग-अलग समय की संवेदनशीलता को हमारे सामने लाती हैं. चर्चा में शंकर, विवेकानंद, योगेन्द्र आहूजा, महेश दर्पण, प्रेमपाल पाल शर्मा, राकेश भारतीय ने भी दोनों कहानियों पर लंबी टिप्पणी की. पंकज बिष्ट ने कहा कि मैंने इस कहानी में एक आदर्श को कहने की कोशिश की है. कार्यक्रम में कथाकार दीर्घ नारायण, हरिसुमन बिष्ट, सरिता कुमारी, सूर्यनाथ सिंह, मनोज कुलकर्णी, प्रेम तिवारी, बली सिंह, मोमिना, प्रतिभा, अनुपम सिंह, अशोक तिवारी, पंकज तिवारी , दीपक कुमार, विपिन चौधरी, अभिषेक मिश्रा, शंभु यादव, सुषमा कुमारी, सुल्तान त्यागी, दीपक गोंड व अन्य लोग उपस्थित थे.