नई दिल्लीः आईटीओ स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में 'कथा- कहानी' नामक गोष्ठी के आयोजन में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कई साहित्यप्रेमी व रचनाकार जुटे. इस गोष्ठी में वरिष्‍ठ कथाकार रमेश उपाध्याय ने अपनी कहानी 'काठ में कोंपल' व रचना त्‍यागी ने अपनी कहानी 'काला दरिया' का पाठ किया. रमेश उपाध्याय की कहानी पर बोलते हए कथाकार महेश दर्पण ने कहा कि इस कहानी को सुनते हुए अतीत के रमेश उपाध्याय याद आते हैं, जब उन्‍होंने जनवादी लेखक संघ में ट्रेंड सेटर की भूमिका निभाई थी. यह कहानी विकल्पहीन स्थिति में बेहतर व्‍यवस्‍था की तलाश करते हुए यह बताती है कि कैसे राष्ट्र, राज्य अप्रासंगिक होते चले गये. उन्होंने कहा कि मुझे रमेश उपाध्याय यशपाल के करीब लगते हैं, जो अपने सपनों को एक विजन के रुप में रखते हैं. रचना त्‍यागी की कहानी के बारे में महेश दर्पण का मानना था कि यह कहानी अभावग्रस्त जीवन के उतरन की कथा है और विकास के मॉडल पर एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा करती है. जानकीप्रसाद शर्मा ने रमेश उपाध्याय की कहानी पर अपनी बात कहने से पहले कैफी आजमी का शेर सुनाते हुए कहा, 'सब उठो, मैं भी उठूं, तुम भी उठो, तुम भी उठो, कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी.' उनका कहना था कि अदम्य आशावाद इस कहानी की बहुत बड़ी ताकत है. रमेश उपाध्याय की यह कहानी 1991 में सोवियत संघ के विघटन से लेकर 2015-2016 में पाठ्यक्रम में किताबों को बदलने, लव जेहाद जैसे समय के सवालों से रूबरू कराने के साथ ही इस दौरान के राजनीतिक परिवर्तनों के संकेतों को अपने में समेटती है. उन्‍होंने रमेश उपाध्याय की अन्‍य कहानियों 'ट्रेजेडी माई फुट', 'कामधेनु', 'कल्पवृक्ष', 'अर्थतंत्र' का उल्लेख करते हुए कहा कि इन कहानियों की तरह यह कहानी भी देश और दुनिया की सापेक्षता को अपने में समेटे हुए है. उन्‍होंने कहा कि काठ में कोंपल आने का यह विचार एक मजदूर के जेहन में आता है, जो कहानी की बहुत बड़ी खूबी है. रचना त्‍यागी के बारे में उनका मानना था कि यह कहानी स्वच्छता अभियान के पाखंड को सामने लाती है और दलित कहानियों के बारे में सोचने के लिए हमें एक नया नजरिया देती है.
नूर जहीर ने रचना त्‍यागी की कहानी पर बोलते हुए कहा कि यह देखना चाहिए कि कहानी में विवरण ज्यादा न हो. पात्र जो महसूस कर रहा है, वही कहानी में आना चाहिए. उन्‍होंने संक्षिप्तता के लिहाज से ब्रेख्‍त के नाटकों को पढ़ने की सलाह दी. रमेश उपाध्याय की कहानी के बारे में उनका मानना था कि कहानी में मुसलमान को घर किराये पर न देने का सवाल बहुत ही शिद्दत से आया है. उन्‍होंने यह भी कहा कि कहानी में बेटी की मानसिकता को कम्‍युनिस्‍ट मां -बाप ने तैयार नहीं किया. इन दोनों कहानियों पर टिप्पणी करते हुए कथाकार योगेन्‍द्र आहूजा ने कहा कि ये दोनों कहानियां हमारे समय के जरूरी सवालों को उठाती हैं. रमेश उपाध्याय की कहानी के बारे में उनका मानना था कि लंबे काल खंड को समेटने वाली बड़े फलक की कहानी है. कथाकार शंकर का मानना था कि रमेश उपाध्याय की यह कहानी भूमंडलीय यथार्थवाद की कहानी है. कहानी में आठ पात्र हैं और सभी पात्र वैचारिक रुप में पूरी तरह सजग हैं. यह कहानी समय का ऐतिहासिक दस्तावेज है. रचना त्‍यागी की कहानी के बारे में शंकर का कहना था कि यह कहानी व्‍यवस्‍था के सवालों से टकराती है. समय के अंतर्विरोध कहानी को महत्त्वपूर्ण बनाते हैं. कथाकार संजीव ने कहा कि रमेश उपाध्याय एक प्रतिबद्ध रचनाकार हैं और उनकी यह कहानी बड़े फलक की कहानी है. प्रेम तिवारी का मानना था कि रमेश उपाध्याय की कहानी वर्ग विरोध और रचना त्‍यागी की कहानी लोक तंत्र की आलोचना की कहानी है. विवेक मिश्र का मानना था कि रमेश उपाध्याय की कहानी, कहानी न होकर औपन्‍यासिकता की श्रेणी में आ जाती है और यह कहानी प्रतीकों के पाखंड को सामने लाती है . रचना त्‍यागी की कहानी को मनुष्यता की कहानी मानते हुए उन्‍होंने कहा कि यह कहानी नेरेटिव को साधकर चलती है. इस गोष्ठी में कथाकार विवेकानंद, सुभाष अखिल, राजकमल, प्रज्ञा, सुधा उपाध्याय, राकेश कुमार, महेन्‍द्र सिंह, सत्‍येन्‍द्र श्रीवास्‍तव, अशोक तिवारी, विपिन चौधरी, सिनी वाली शर्मा, अंकित उपाध्याय, अनुपम त्रिपाठी, राकेश‍ तिवारी व पंजाबी कथाकार नछत्‍तर सिंह मौजूद थे.