नई दिल्लीः वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद के निधन से हिंदी जगत मर्माहत है. 92 साल की उम्र में भी वैद साहित्य और लिखने – पढ़ने को लेकर सचेतन थे. हालांकि इन दिनों वह अमेरिका के न्यूयार्क शहर में अपनी बेटियों के साथ रह रहे थे, पर दिल्ली से उनका नाता नहीं छूटा था. वैद का जन्म पंजाब के दिंगा में 27 जुलाई, 1927 को हुआ था. उन्होंने अपनी लेखनी से कई पीढ़ियों को प्रभावित किया. कृष्ण बलदेव वैद उच्च शिक्षित लेखकों में शुमार थे. अंग्रेजी से पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद हावर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की पढ़ाई की थी, पर लिखा हिंदी में वह भी शानदार. वह हिंदी लेखन के साथ भारत और अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी साहित्य के अध्यापक रहे, जिनमें दिल्ली का हंसराज कॉलेज, पंजाब विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क स्टेट युनिवर्सिटी और ब्रेंडाइज यूनिवर्सिटी शामिल है. वैद भारत भवन, भोपाल में 'निराला सृजनपीठ' के अध्यक्ष भी रहे.
कृष्ण बलदेव वैद ने डायरी लेखन, कहानी और उपन्यास के अलावा नाटक और अनुवाद के क्षेत्र में भी अप्रतिम योगदान दिया.वैद की सौ से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुईं. वैद ने 'दूसरे किनारे के' जैसी कालजयी रचना की. उनकी लेखनी में मनुष्य जीवन के नाटकीय सन्दर्भों की गहरी पहचान है, खासकर साठ के दशक का समाज, परिवार, व्यक्ति और रिश्ते. बिमल उर्फ जाएं तो जाएं कहां, काला कोलाज, एक नौकरानी की डायरी, नर नारी, माया लोक, जैसे उपन्यासों से उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी एक अलग ही पहचान बनाई. वैद को साहित्य अकादमी सम्मान मिल चुका था, और उनकी रचनाओं के अनुवाद कई भारतीय व विदेशी भाषाओं में हो चुके थे. वैद के निधन पर कई हिंदी लेखकों और संस्थाओं ने शोक जताया है, जिनमें मप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन के अलावा ममता कालिया, प्रेम जनमेजय, चित्रा देसाई, निर्मला भुराड़िया, यतींद्र मिश्र, साधना अग्रवाल, धीरेंद्र अस्थाना और विनोद अग्निहोत्री आदि शामिल हैं.