नई दिल्लीः 'प्रधान मंत्री जी – आपका हार्दिक अभिनन्दन. मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी.' अपने निधन से कुछ घंटे पहले देश की विदेश मंत्री रहीं सुषमा स्वराज का यह आखिरी ट्वीट यह बताने के लिए पर्याप्त है कि उन्हें हिंदी से कितना प्रेम था. सुषमा स्वराज के निधन से हिंदी भाषा ने अपना कितना बड़ा अंतर्राष्ट्रीय पैरोकार खो दिया इसे सोशल मीडिया पर सक्रिय हिंदी भाषा के समर्थकों और तमाम साहित्यकारों की पोस्ट से देखा जा सकता है. सुषमा का हिंदी और संस्कृत ही नहीं समस्त भारतीय भाषाओं से प्रेम यों ही नहीं था. कहते हैं कॉलेज के दिनों में सुषमा ने लगातार तीन वर्षों तक लगातार एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट और हरियाणा सरकार के भाषा विभाग की आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में तीन बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी वक्ता का पुरस्कार जीता. 14 फ़रवरी 1953 को हरियाणा के अंबाला कैंट में जन्मी सुषमा स्वराज ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से की थी. अम्बाला छावनी के सनातन धर्म कॉलेज से संस्कृत और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई करने के बाद सुषमा ने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से क़ानून की डिग्री ली.

सुषमा स्वराज एक प्रखर और ओजस्वी वक्ता, प्रभावी सांसद और कुशल प्रशासक तो थी हीं एक दौर में वाजपेयी के बाद भाजपा की सबसे लोकप्रिय वक्ता मानी जाती थीं. उन्हें असाधारण सांसद चुना गया था. वह किसी भी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता भी थीं. उन्हीं के प्रयास से 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को चुना गया था. यह सुषमा का हिंदी प्रेम ही था कि यह सम्मेलन केवल साहित्य की जगह हिंदी भाषा की उन्नति पर केंद्रित जलसा बन गया. वह विश्व हिंदी सम्मेलनों का सर्वाधिक प्रमुख चेहरा थीं. देश-दुनिया में हिंदी के बढ़ते महत्त्व और चलन पर सुषमा बहुत खुश हुआ करती थीं. इसी साल जब फरवरी में अबू धाबी न्यायिक विभाग ने अरबी और अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी को शहर की अदालत में बोली जाने वाली तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी, तो सुषमा स्वराज ने विशेष तौर पर अबुधाबी का धन्यवाद किया.  भारतीय भाषाओं को समर्पित शायद ही कोई ऐसा आयोजन हो, जिसमें सुषमा स्वराज को बुलाया गया हो, वह स्वस्थ्य रही हों, और न गई हों. अपनी भाषा के लिये उनका समर्पण हमेशा सराहनीय रहा. हिंदी की इस बेटी को नमन!