नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने 'साहित्योत्सव' के दौरान एक नया इतिहास रचा. वह था राजधानी दिल्ली में पहली बार ट्रांसजेंडर कवि सम्मेलन का आयोजन. इस कार्यक्रम का उद्घाटन वक्तव्य साहित्यकार, विदुषी मानबी बंद्योपाध्याय ने दिया. वह खुद ट्रांसजेंडर हैं और एक स्कूल की प्रधानाचार्य हैं. डॉ मानबी काफी लंबे समय ट्रांसजेंडर समाज को एक सम्मानित आवाज देने का प्रयास कर रही हैं. उन्होंने ट्रांसजेंडर कवियों को मंच प्रदान करने के लिए साहित्य अकादमी की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह अवसर हम सबके लिए स्मरणीय है और इससे हम सबके लिए सम्मान के नए रास्ते खुलेंगे. इस अवसर पर 12 ट्रांसजेंडर कवियों ने अपनी कविता प्रस्तुत कीं. ये ट्रांसजेंडर कवि पश्चिम बंगाल, बिहार एवं छत्तीसगढ़ से आए हुए थे. इनमें से कुछ प्रोफ़ेसर, अध्यापक, सिविल इंजीनियर आदि तक थे.सभी ट्रांसजेंडर कवियों का दर्द छलक उठा. उनकी कविताओं में अपनी पहचान को लेकर एक संवेदना थी, पीड़ा थी. सभी ने कहा वे पैदा तो मर्द के रूप में होते हैं लेकिन उनका मन स्त्री का होता है.
'साहित्योत्सव' के इस आयोजन में सभी के मन में उनके घरवालों द्वारा उनकी उपेक्षा करना तथा समाज द्वारा उन्हें स्वीकार ना करने का दर्द था. सभी ने कहा कि सब लोग हमारे तन को छूना चाहते हैं लेकिन मन को कोई नहीं. रेशमा जो बिहार से आई थीं ने कहा कि अब जो थोड़ा बहुत सम्मान उन्हें मिल रहा है वह कानूनों की वजह से है ना कि समाज द्वारा दिया जा रहा है. अपनी कविता प्रस्तुत करने वाली ट्रांसजेंडर कवयित्रियां थीं, देवज्योति भट्टाचार्जी, रानी मजुमदार, शिवानी आचार्य, रेशमा प्रसाद, देवदत्त विश्वास, अहोना चक्रवर्ती, प्रस्फुटिता सुगंधा, विकशिता डे, कल्पना नस्कर, अंजलि मंडल, रवीना बारिहा एवं अरुणाभ नाथ.
'भारतीय साहित्य में गाँधी' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतिम दिन जो सत्र आयोजित हुए, उनमें 'भारतीय काव्य, नाटकों पर गाँधी का प्रभाव', 'लोकप्रिय संस्कृति में गाँधी', 'गाँधी पर समकालीन साहित्यिक विमर्श' एवं 'गाँधी के प्रभाव' पर चर्चा हुई, और इस तरह 'साहित्योत्सव' संपन्न हुआ.