इलाहाबादः साल 1984 के आम चुनाव में हेमवतीनंदन बहुगुणा पर हीरो अमिताभ बच्चन की जीत देखने वाले उस चुनाव में साहित्यकारों की अहम भूमिका को भुला देते हैं. साहित्यकार चाहे अपनी कलम से सियासी विचारधारा के तहत उससे जुड़े दलों का चाहे जितना समर्थन करता हो, लेकिन वह किसी उम्मीदवार के पक्ष में खुलकर नहीं आता. पर इस मामले में इलाहाबाद संसदीय सीट का किस्सा अलग था, जहां हरिवंशराय बच्चन के बेटे अमिताभ बच्चन कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थे. कांग्रेस ने भले ही एक हीरो को खड़ा किया था, पर देश का साहित्य जगत तब भी उन्हें अपनी जमात के एक सदस्य का बेटा ही मानता था. लिहाजा उनके पक्ष में साहित्यकारों की टोली घर-घर जाकर लोगों से अनोखे अंदाज में वोट मांगती थी. अपने पिता हरिवंशराय बच्चन के प्रभाव में अमिताभ बच्चन का चुनाव प्रचार भी हटकर होता था. उनके पक्ष में कवि, साहित्यकार, लेखक जैसे बुद्धिजीवी वर्ग के लोग प्रचार करते और इस दौरान अमिताभ बच्चन की फिल्मों के मशहूर डायलॉग मसलन 'दीवार' फिल्म का 'आज मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बैलेंस है, क्या है तुम्हारे पास,' 'त्रिशूल' फिल्म का 'सही बात को सही वक्त पे किया जाए तो उसका मजा ही कुछ और है, और मैं सही वक्त का इंतजार कर रहा हूं', आदि बोलते. पिता के कहने पर अमिताभ भी जनसंपर्क के दौरान मुंबईया भाषा छोड़ स्थानीय बोली जिसमें अवधी, भोजपुरी का पुट ज्यादा होता, बोलते थे.
यही नहीं चुनाव में साहित्यकारों के प्रभाव को देखते हुए हरिवंश राय बच्चन ने बेटे अमिताभ के समर्थन के लिए सिविल लाइंस स्थित एक मिल में चुनावी सभा बुलाई. कवि यश मालवीय बताते थे कि इसमें शहर के लगभग सभी साहित्यकारों, कवि, लेखक, शायर आदि को आमंत्रित किया गया था. नतीजा यह हुआ कि यह चुनावी सभा पूरी तरह से साहित्यिक सभा के रूप में तब्दील हो गई. कोई भी साहित्यकार या कवि ऐसा नहीं था, जो इसमें शामिल नहीं हुआ हो. कवयित्री महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा, जगदीश गुप्ता, अमृत राय, लक्ष्मीकांत वर्मा, दूधनाथ सिंह, डॉ. रामजी पांडेय और यश मालवीय जैसे लोग वहां मौजूद थे. सभी ने मंच पर अपनी-अपनी रचनाएं पढ़ीं और अमिताभ के समर्थन में वोट भी मांगा. नतीजा सबके सामने था, सियासत के दिग्गज बहुगुणा एक साहित्यकार के बेटे से चुनाव हार चुके थे.