नई दिल्लीः धीरे-धीरे ही सही हिंदी के चर्चित प्रकाशकों ने सक्षम भारतीय साहित्यकारों की रचनाओं को लेखक के सहयोग से ही सही थोड़ी बहुत तरजीह देनी शुरू कर दी है. इसमें अनूदित पुस्तकें भी शामिल हैं. हाल ही में वाणी प्रकाशन ने पेशे से इंजीनियर कन्नड़ लेखक विवेक शानभाग की हिंदी में अनूदित उपन्यास 'घाचर-घोचर' के लिए राजधानी दिल्ली में लोकार्पण के बहाने एक परिचर्चा का आयोजन किया. दिल्ली के लोधी रोड के इंडिया हैबिटेट सेंटर के अमलतास में आयोजित इस उपन्यास पर चर्चा के लिए सुकृता पॉल कुमार, अरुणव सिन्हा और अनामिका जैसी अनुवाद, लेखन और कविता से जुड़ी हस्तियां जुटीं और सबने इस उपन्यास के हिंदी में प्रकाशन पर खुशी जाहिर की और तारीफ के पुल बांध दिए. कमाल की बात यह कि हिंदी में आई कन्नड़ भाषा की इस किताब के दिल्ली में लोकार्पण से पहले ही उसकी अंग्रेजी में हुई समीक्षाओं का जिक्र इतनी तरह से और इतनी बार कर दिया गया कि हिंदी के लेखकों, पाठकों के लिए उनके हाथों में पहुंचने से पहले ही इस किताब की एक विशेष छवि निर्मित हो गई है. यह और बात है कि मूल रूप से भारतीय भाषा में लिखी गई इस पुस्तक की भारतीय भाषाओं में की गई समीक्षा का जिक्र न के बराबर है, पर विदेशी भाषा के बड़े-बड़े प्रकाशनों का जिक्र करते हुए उसकी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का बखूबी जिक्र किया गया.

न्यूयॉर्क टाइम्स' और 'द गार्डियन' का हवाला देते दावा किया गया कि इन प्रकाशनों ने इसे साल 2017 की सर्वश्रेष्ठ दस पुस्तकों में से एक करार दिया है. 'न्यूयॉर्क टाइम्स बुक रिव्यू' का जिक्र करते हुए कहा गया कि नैतिक पतन की भयावह कहानी का प्लॉट लिए हुए घाचर-घोचरको इस दशक के बेहतरीन भारतीय उपन्यास के रूप में घोषित किया गया है… और इस उपन्यास के प्रशंसकों सुकेतु मेहता और कैथरीन बू ने शानभाग की तुलना चेखव से की है.आयरिश टाइम्स' के आइलिन बैटरस्बी का जिक्र करते हुए कहा गया कि यह उपन्यास विवेक शानभाग के बेहतर साहित्यिक कार्यों में से एक है. 'इस त्रासदीय उपन्यास की क्लासिक कहानी, पूंजीवाद और भारतीय समाज, दोनों के लिए एक दृष्टांत है.को न्यू यॉर्करकी टिप्पणी बताया गया तो द पेरिस रिव्यूके हवाले से दावा किया गया कि 'घाचर-घोचरहमें एक विषय-विशेष के साथ पेश करता है.इस क्रम में द इंडियन एक्सप्रेस में गिरीश कर्नाड के विचार इन शब्दों में रखे गए, ‘श्रीनाथ पेरूर का अनुवाद उपन्यास की बारीकियों को पकड़ते हुए शानभाग के लेखन को और भी समृद्ध करता है. मूल कन्नड़ को पढ़ने और प्रशंसा करने के बाद मुझे आश्चर्य हुआ कि यह एक अनुवाद था.द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रज्वल पराजुल्य की समीक्षा का हवाला यों दिया गया. 'बहुत ही कम पुस्तकें ऐसी होती हैं जो पाठकों और अपाठकों के हाथों में एक साथ होती हैं. घाचर-घोचरएक ऐसी ही पुस्तक है.'  

 

जाहिर है, वाणी प्रकाशन इस किताब को लेकर खासा उत्साहित है. याद रहे कि विवेक शानभाग की कहानियां अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनुदित हो चुकी हैं. उनके उपन्यास घाचर-घोचरका अंग्रेजी अनुवाद भारत, अमेरिका, ब्रिटेन में प्रकाशित हो चुका है. यह किताब दुनिया की 18 अन्य भाषाओं में भी अनूदित है. शानभाग मास्ति पुरस्कारसे  सम्मानित हैं और 2016 में अंतर्राष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम के तहत आयोवा विश्वविद्यालय में मानद फेलो रह चुके हैं. उनके पांच लघु कथा संग्रह, तीन उपन्यास और दो नाटक प्रकाशित हो चुके हैं. उन्होंने दो कहानी संकलनों का संपादन भी किया है, जिनमें से एक अंग्रेज़ी में है. उनकी कई छोटी कहानियों का नाट्य रूपांतरण भी हुआ है और एक पर लघु फिल्म भी बनी है. विवेक शानभाग साहित्यिक पत्रिका देश कालके संस्थापक सम्पादक, शुरुआती दौर में प्रमुख कन्नड़ अख़बार प्रजावाणीके साहित्यिक संपादक और अंग्रेजी में अनुदित यू.आर. अनन्तमूर्ति की कन्नड़ पुस्तक हिन्दुत्व या हिन्द स्वराजके सह-अनुवादक भी हैं.