पटना: 'रंगविकल्प ' और ' बिहार म्यूजियम' द्वारा आयोजित मूर्तिकला प्रदर्शनी के दौरान ' 'बिहार में मूर्तियों की चोरी व तस्करी' विषय पर बातचीत हुई। अतिथि थे पत्रकार व लेखक अरुण सिंह और उनसे बातचीत की जाने माने रंगकर्मी जयप्रकाश। अरुण सिंह ने कहा " हमें अंग्रेजों को धन्यवाद देना चाहिए की उन्होंने यहां की मूर्तियों को खुदाई करवाकर बाहर निकलवाया और उसके महत्व से परिचित कराया। लेकिन वो उन बहुमूल्य मूर्तियों को देश से बाहर भी ले गए। आज़ादी के पहले उन मूर्तियों को आसानी से ले जाया करते थे आज़ादी के बाद वे यहां के लोगों से मूर्तियां चोरी करवाते थे और तस्करी के जरिए विदेश ले जाते थे। कई बार मंदिर के पुजारियों को धन देकर या उनकी हत्या कर भी मूर्तियों की तस्करी की गई। देश भर में जितनी मूर्तियां चोरी हुई हैं उसमें से तीस प्रतिशत बिहार से हुईं।'
अरुण सिंह ने आगे कहा कि " अभी तेल्हाड़ा की खुदाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल की गई। पहले भी वहां के लोगों को मूर्तियां मिलती रही है। उसमें कितनी मूर्तियां गायब हो गई इसका पता नहीं। लोगों के बीच जागरूकता नहीं है। गांवों आदि में मूर्तियां मिलती थीं तों लोगों को लगता था कि भगवान मिल गए हैं। जबकि उनका पुरातात्विक व ऐतिहासिक महत्व रहा है। "
अरुण सिंह के मुताबिक" राहुल गैलरी से तारा की मूर्ति चोरी हुई, राजेन्द्र बाबू की गैलरी से चोरी हुई, दरभंगा महाराज के कलेक्शन से हाथी दांत की चोरी हुई। बिहार में इतनी चोरी हुई है कि अनुमान लगाना संभव नहीं है। यहां की मूर्तियां दुनिया भर के बड़े बड़े संग्रहालयों में है। "
जयप्रकाश ने जब भरतपुरा लाईब्रेरी की चोरी के बारे में पूछा तो अरुण सिंह ने बताया कि " भरतपुरा दरअसल जमींदारों का घराना था। वहां इतनी कीमती चीजें थी कि उनके परिवार वालों को भी उसका अहसास नहीं था। बहुमूल्य पांडुलिपियां ऐसे ही लाल कपड़े में टेबल पर रखी रहती थी। भरतपुरा लाइब्रेरी से फिरदौसी शाहनामा, जिसमें ईरान के राजा की सचित्र जीवनी थी, की प्रति सत्तर के दशक में चोरी चली गई।
अरुण सिंह ने कई उदाहरण देकर बताया कि लोग अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति कतई चिंतित नहीं हैं क्योंकि ऐसी जगहों पर लोग अपना या अपनी प्रेमिकाओं के नाम उकेर कर छेड़छाड़ करते हैं। ये अपनी महान विरासत के प्रति हमारी उदासीनता का परिचायक है।"
इस दिलचस्प बातचीत में शहर के कवि, साहित्यकार, मूर्तिकार , चित्रकार शामिल थे।