नई दिल्लीः राष्ट्रीय नाटय विद्यालय के श्रुति कार्यक्रम के अंतर्गत हिंदी की प्रख्यात कथाकार चित्रा मुद्गल ने रचना पाठ व बातचीत की. इस अवसर पर चित्रा मुद्गल ने अपनी कथा प्रक्रिया के बारे में बातचीत की व साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अपने उपन्यास 'पोस्ट बॉक्स न. 203- नाला सोपारा' से कुछ अंश भी पढ़े. चर्चित कथाकार-आलोचक महेश दर्पण ने उनसे रोचक अंदाज में कई सवाल पूछे, जिस पर चित्रा मुद्गल ने अपना मंतव्य साझा किया. इस दौरान चित्रा मुद्गल ने चिट्ठियों की महत्ता पर भी अपनी बात कही. उनका कहना था कि चिट्ठियां बेहद असरदार होती हैं. मैंने अपने पिताजी से चिट्ठियों के जरिए ही संवाद किया. उन्होंने कहा कि यही एक रास्ता था, जो मुझे नजर आया. मैं अक्सर भविष्य की योजनाओं पर पिताजी की रजामंदी के लिए अपनी मां से पूछने के लिए कहती. मुझे नहीं लगता कि मेरी मां उनसे कुछ पूछ पाती थीं. असल में वह हम बच्चों से भी ज्यादा डरती थीं.
वरिष्ठ साहित्यकार चित्रा मुद्गल ने चिट्ठियों से जुड़े अपने अनुभव पर काफी विस्तार से चर्चा की और कहा कि तभी मुझे यह महसूस हुआ कि शब्दों की बहुत महत्ता होती है. मुद्गल ने कहा इस माहौल में एक चीज मुझे समझ आई थी कि चिट्ठी ही मेरे पास एकमात्र विकल्प है. जो मैं उनकी तकिया के नीचे दबा दूं, जहां उनकी सिगरेट का पैकेट व लाइटर रहता है, जिसे वह उठाने के लिए तकिया के नीचे हाथ डालेंगे. जब मैंने चिट्ठियां अपनी पिताजी की तकिए के नीचे रखनी शुरू की तो सुबह मुझे उन चिट्ठियों के टुकड़े मिलते. जब वह तैयार हो रहे होते तो उन टुकड़े को बटोर लाती और मां से कहती कि मुझे जवाब मिल गया है. हालांकि, इसका असर उन पर होता था या नहीं, यह मालूम नहीं, लेकिन मुझे लगता था कि असर हो रहा है. इस कार्यक्रम में चित्रा मुद्गल ने ‘जब भी तुम्हें' और ‘उदास है समाचार' समेत अपनी तीन अप्रकाशित कविताओं का रचना पाठ भी किया. विद्यालय के सम्मुख सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र और साहित्य प्रेमी मौजूद थे.