नई दिल्लीः अगर समाज में सबकुछ ठीक हो, सबकुछ अनुकूल हो तो लेखक कुछ नहीं लिख पाएगा, क्योंकि साहित्य की प्रासंगिकता विरोध में ही होती है. यह मानना है वरिष्ठ और मशहूर आलोचक कर्ण सिंह चौहान का. लखनऊ के लोकोदय प्रकाशन की ओर से 'समकालीन साहित्यिक परिदृश्य और घटती पाठकीयता' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में अध्यक्षीय भाषण देते हुए चौहान ने कहा कि समाज के जो मौजूदा हालात हैं, वह बागी और क्रांति की मानसिकता रखने वाले लेखकों के लिए अपनी लेखनी को समृद्ध बनाने का स्वर्णिम मौका प्रदान करते हैं. विषय प्रवर्तन करते हुए युवा कवि सिद्धार्थ बल्लभ ने घटती पाठकीयता को लेकर कई सवाल उठाए थे. इन सवालों पर चौहान ने कहा कि किताबों की बिक्री जरूर घटी है, लेकिन पाठकीयता कम नहीं हुई है, क्योंकि तकनीकी विकास के साथ पढ़ने के माध्यम बदले हैं. उन्होंने लेखकों-प्रकाशकों को सलाह दी कि वो केवल किताबों तक सीमित नहीं रहकर नए माध्यमों को भी अपनाएं, तभी वह दुनिया भर के लाखों करोड़ों पाठकों तक पहुंच सकेंगे. आलोचक संजीव कुमार का मानना था कि उम्दा साहित्य के पाठक हमेशा ही कम होते हैं क्योंकि वह आम पाठक के कॉमन सेंस पर चोट करता है. उनका मानना था कि इसलिए उम्दा साहित्य लोकप्रिय साहित्य से अलग हैं. रत्न कुमार संभारिया और दूसरे वक्ता इस बात से असहमत थे कि पाठकों की संख्या कम हो रही है. उनका कहना था कि अगर अच्छा लिखा जाएगा तो पाठक जरूर पढ़ेगा. लेखक का जोर क्वांटिटी पर नहीं क्वालिटी पर होना चाहिए.
दिल्ली के कड़कड़डूमा में आयोजित इस कार्यक्रम के पहले सत्र में युवा कथाकार एजाजुल हक को लोकोदय नवलेखन सम्मान से नवाजा गया और उनके कहानी संग्रह 'अँधेरा कमरा' का लोकार्पण भी किया गया. इस अवसर पर कुल 16 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया. सभी रचनाकारों ने बृजेश नीरज की तारीफ करते हुए मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक और सांस्कृतिक माहौल में एक साथ 16 पुस्तकों के लोकार्पण को एक सार्थक और साहसिक हस्तक्षेप बताया. वरिष्ठ कवि विजेंद्र के कविता संग्रह ‘जो न कहा कविता में’ का लोकार्पण एक दिन पहले ही कवि के आवास पर ही किया गया था. समारोह में सुशील कुमार की आलोचना की पुस्तक ‘आलोचना का विपक्ष’, गणेश गनी के कविता संग्रह ‘वह साँप-सीढ़ी नहीं खेलता’, सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव के कविता संग्रह ‘अँधेरे अपने अपने’, डॉ शिव कुशवाहा के संपादन में प्रकाशित पाँच कवियों की प्रतिनिधि कविताओं के संग्रह ‘शब्द-शब्द प्रतिरोध’, डॉ मोहन नागर के कविता संग्रह ‘अब पत्थर लिख रहा हूँ इन दिनों’, कुमार सुरेश के व्यंग्य उपन्यास ‘तंत्र कथा’, प्रद्युम्न कुमार सिंह के कविता संग्रह ‘कुछ भी नहीं होता अनन्त’, हनीफ मदार के कहानी संग्रह ‘रसीद नंबर ग्यारह’, डॉ गायत्री प्रियदर्शिनी के कविता संग्रह ‘उठते हुए’, अनुपम वर्मा के कहानी संग्रह ‘मॉब लिचिंग, भरत प्रसाद के सृजन पर केंद्रित और बृजेश नीरज द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘शब्द शब्द प्रतिबद्ध’, अतुल अंशुमाली के उपन्यास ‘सदानन्द एक कहानी का अन्त’, शम्भु यादव के कविता संग्रह ‘साध रहा है जीवन निधि’ का लोकार्पण हुआ.प्रगति मैदान में पुस्तक मेला चल रहा था. बावजूद इसके कड़कड़डूमा में आयोजित इस समारोह में रचनाकारों और पाठकों की भीड़ थी. हॉल खचाखच भरा हुआ था. अलग-अलग राज्यों के रचनाकारों की मौजूदगी ने समारोह को और खास बना दिया. युवा कवि आलोचक अरूण कुमार ने दोनों सत्रों का बेहतरीन संचालन किया. चित्रकार पंकज तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया.