शिशिर कणों से लदी हुई/ कमली के भीगे हैं सब तार/ चलता है पश्चिम का मारुत/ ले कर शीतलता का भार/ अरुण किरण सम कर से छू लो/ खोलो प्रियतम खोलो द्वार….इन पंक्तियों के रचयिता रामकुमार वर्मा का जन्म 15 सितंबर, 1905 को मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में हुआ था. वह आधुनिक हिंदी साहित्य के 'एकांकी सम्राट' के रूप में जाने जाते हैं, पर उन्होंने व्यंग्यकार और कवि के रूप में भी खासी पहचान अर्जित की. वह एक उम्दा समीक्षक, अध्यापक तथा इतिहास-लेखक भी थे. उन्होंने 17 वर्ष की आयु में एक कविता प्रतियोगिता में 51 रुपए का पुरस्कार जीता, जिसके बाद उनकी साहित्यिक यात्रा आरंभ हुई. रामकुमार वर्मा की प्रबल इच्छा अभिनेता बनने की भी थी. इन्होंने अपने विद्यार्थी जीवन में कई नाटकों में अभिनेता की सफल भूमिका निभाई पर असहयोग आंदोलन की आंधी उठी में सब छूट गया. बाद में उन्होंने पुनः अध्ययन प्रारम्भ किया और प्रयाग विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर किया और फिर नागपुर विश्वविद्यालय से 'हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. अनेक वर्षों तक रामकुमार वर्मा प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक तथा फिर अध्यक्ष रहे. डॉ. रामकुमार वर्मा ने देश ही नहीं विदेशों में भी हिंदी का परचम लहराया. 1957 में वे मास्को विश्वविद्यालय के अध्यक्ष के रूप में सोवियत संघ की यात्रा पर गए. 1963 में उन्हें नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय ने शिक्षा सहायक के रूप में आमंत्रित किया. 1967 में वे श्रीलंका में भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष के रूप में भेजे गए.

हिंदी एकांकी के जनक रामकुमार वर्मा ने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और साहित्यिक विषयों पर 150 से अधिक एकांकी लिखीं. 'चित्ररेखा' काव्य-संग्रह पर इन्हें उस जमाने का सर्वश्रेष्ठ 'देव पुरस्कार' मिला. 'सप्त किरण' एकांकी संग्रह पर अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन पुरस्कार और मध्यप्रदेश शासन परिषद से 'विजयपर्व' नाटक पर प्रथम पुरस्कार मिला. उनकी प्रमुख कृतियां हैंः काव्य संकलन; 'वीर हमीर', 'चित्तौड़ की चिंता', 'साहित्य समालोचना', 'अंजलि', 'अभिशाप', 'हिन्दी गीतिकाव्य', 'निशीथ', 'जौहर' और 'चित्ररेखा', इतिहास, एकांकी, ऐतिहासिक नाटक और संकलन-संपादित पुस्तकें हैं; 'पृथ्वीराज की आँखें', 'कबीर पदावली', 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास', 'आधुनिक हिन्दी काव्य', 'रेशमी टाई', 'शिवाजी', 'चार ऐतिहासिक एकांकी', 'रूपरंग', 'कौमुदी महोत्सव', 'एकलव्य', 'उत्तरायण', 'ओ अहल्या' आदि. उन्होंने एक बार कहा था, ‘जिस देश के पास हिंदी जैसी मधुर भाषा है वह देश अंग्रेज़ी के पीछे दीवाना क्यों है? स्वतंत्र देश के नागरिकों को अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए. हमारी भावभूमि भारतीय होनी चाहिए. हमें जूठन की ओर नहीं ताकना चाहिए.