अगस्त लगता है मूर्धन्य साहित्यकारों के जन्मने का महीना है. गोविंद मिश्र, मैथिली शरण गुप्त, भीष्म साहनी, मनोहर श्याम जोशी, अभिमन्यु अनत, इस्मत चुगताई, सुभद्रा कुमारी चौहान, अमृत लाल नागर, गुलजार और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी इसी माह पैदा हुए थे. इस महीने की 20 तारीख को साल 1917 में मशहूर साहित्यकार त्रिलोचन शास्त्री का भी जन्म हुआ था. उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के कठघरा चिरानी पट्टी के छोटे से गांव से काशी हिंदू विश्वविद्यालय तक अपने सफर में उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखीं. उनका मूल नाम वासुदेव सिंह था. उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए एवं लाहौर से संस्कृत में शास्त्री की उपाधि प्राप्त की. वह आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे, इस त्रयी के अन्य दो स्तंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे.
बाज़ारवाद के प्रबल विरोधी होने के बावजूद त्रिलोचन हिंदी में प्रयोगधर्मिता के समर्थक थे. उनका तर्क था कि, 'भाषा में जितने प्रयोग होंगे, वह उतनी ही समृद्ध होगी.' त्रिलोचन शास्त्री ने हमेशा ही नवसृजन को बढ़ावा दिया. वह नए लेखकों के लिए उत्प्रेरक थे. उनका पहला कविता संग्रह 'धरती' 1945 में प्रकाशित हुआ था. 'गुलाब और बुलबुल', 'उस जनपद का कवि हूं', 'ताप के ताये हुए दिन', 'तुम्हें सौंपता हूं,' ' दिगंत और धरती' और 'मेरा घर' आदि इनकी प्रमुख रचनाएं हैं. त्रिलोचन शास्त्री के लगभग 17 कविता संग्रह प्रकाशित हुए. वह हिंदी के अतिरिक्त अरबी और फारसी भाषाओं के निष्णात ज्ञाता थे. त्रिलोचन ने वही लिखा जो कमज़ोर के पक्ष में था. वह मेहनतकश और दबे कुचले समाज की आवाज़ थे. उनकी कविता भारत के ग्राम-देहात के उस निम्न वर्ग को संबोधित थी, जो कहीं दबा था कही जग रहा था, कहीं संकोच में पड़ा था. उन्हीं के शब्दों में-
उस जनपद का कवि हूं
जो भूखा दूखा है
नंगा है अनजान है
कला नहीं जानता
कैसी होती है वह क्या है
वह नहीं मानता
त्रिलोचन शास्त्री पत्रकारिता के क्षेत्र में भी खासे सक्रिय रहे. उन्होंने प्रभाकर, वानर, हंस, आज, समाज जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया. उन्हें हिंदी सॉनेट का साधक माना जाता है. उन्होंने सॉनेट को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की. इसके अतिरिक्त कहानी, गीत, ग़ज़ल और आलोचना से भी उन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया. उन्हें हिंदी की सेवा के लिए हिंदी अकादमी ने शलाका सम्मान से सम्मानित किया था. उन्हें 'साहित्य रत्न' जैसी उपाधि के अलावा 'ताप के ताये हुए दिन' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था. वह उत्तर प्रदेश हिंदी समिति पुरस्कार, हिंदी संस्थान सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, भवानी प्रसाद मिश्र राष्ट्रीय पुरस्कार, सुलभ साहित्य अकादमी सम्मान और भारतीय भाषा परिषद सम्मान से भी नवाजे गए थे.