उषाकिरण खान  की सृजनात्मक सक्रियता के सभी कायल हैं। उनका नया उपन्यास 'गई झुलनी टूट' किताबघर ,नई दिल्ली से प्रकाशित होकर आया है।  उषा किरण खान हिंदी कथा साहित्य की एक चर्चित लेखिका हैं। इससे पूर्व उनका कई कृतियां   'भामती', 'अगन हिंडोला' और 'सिरजनहार'  प्रसिद्ध रही हैं। वे अपने ऐतिहासिक उपन्यासों के साथ साथ कई नाटकों जैसे 'हीरा डोम' के लिए भी जानी जाती रही हैं। उनकी कहानियां  देश के अलग-अलग हिस्सों में मंचित भी हुई हैं। 
"गई झुलनी टूट" अपने कलात्मक आवरण तथा शीर्षक के कारण बरबस ध्यान आकर्षित कर लेता है। "गई झुलनी टूट'  के सम्बंध में अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी में गंगा शरण सिंह कहते हैं "यह उपन्यास न सिर्फ़ हाशिये पर पड़े लोगों की जीती जागती तस्वीर प्रस्तुत करता है बल्कि ग्राम पंचायत और कालान्तर में विधान सभा चुनावों के समय की जाने वाली जोड़ तोड़ की राजनीति का वास्तविक चेहरा भी दिखाता है। उषाकिरण खान ने बिहार के दूरस्थ अंचलों में बसे गाँवों और वहाँ के सामाजिक जनजीवन का बेहद सहज और स्वाभाविक चित्रण किया है।" साथ में वे यह भी जोड़ते हैं  "हालाँकि इस बार उनकी रचना के केन्द्र में किसी ऐतिहासिक चरित्र या घटना की बजाय हमारे समय का लोक जीवन है। यह दरअसल हाशिये पर जीते हुए कुछ चरित्रों के आजीवन संघर्ष की गाथा है। कहानी के पात्र और उनका कालखण्ड कुछ दशक पुराना है, इसीलिए नए पाठकों को इसमें कुछ ऐसी बातें दिखेंगी जो अब हमारे गाँवों के सामाजिक परिदृश्य पर कम हो चली हैं। जैसे किसी महिला के निःसंतान रह जाने पर बिना ये जानने की कोशिश किये कि समस्या किसके साथ है, उसके पति द्वारा दूसरा विवाह कर लेना।"
समीक्ष्य पुस्तक : गई झुलनी टूट
रचनाकार : उषाकिरण खान
प्रकाशक :  किताबघर प्रकाशन, नई दिल्ली 
मूल्य : रु 300