लखनऊ: संगीतमय उर्दू नाटक जफर- पैकर ए इंसानियत ओ मोहब्बतमें मुगलिया सल्तनत के आखिरी बादशाह बहादुरशाह जफर का देशभक्ति का जज्बा, उनकी शायरी का फन और उनकी लाचारगी के अलग-अलग रंग जिन्दगी के कई पहलुओं के साथ दिखाई दिये। नाटक का मंचन लखनऊ के अटल बिहारी वाजपेयी कन्वेन्शन सेंटर में हुआ। 

आसिफ रिजवी की परिकल्पना और प्रदीप श्रीवास्तव के लेखन-निर्देशन में उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी और अवध आर्ट गैलेक्सी की इस प्रस्तुति में मुख्य अतिथि राज्यपाल राम नाईक थे। विशिष्ट अतिथि के तौर पर बादशाह जफर के वंशज और कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से सम्बद्ध प्रिंस मिर्जा फैजुद्दीन बहादुरशाह जफर तृतीय, पूर्व मंत्री डा.अम्मार रिजवी, उर्दू अकादमी की अध्यक्ष प्रो.आसिफा जमानी व अन्य विशिष्टजन उपस्थित थे। 

बहादुर शाह जफर भारत में मुगल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह थे और उर्दू के माने हुए शायर थे। उन्होंने 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सिपाहियों का नेतृत्व किया। युद्ध में हार के बाद अंग्रेजों ने उन्हें म्यांमार भेज दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई। जफर को आज सूफी का दर्जा हासिल है, रंगून म्यांमार में उनकी दरगाह पर सालाना उर्स होता है। यहीं से ड्रामे की शुरुआत होती है, उर्स की उस रात जफर की रूह मंच पर आकर अपनी दास्तान सुनाती है। नाटिका में न किसी की आंख का नूर हूँ, …….बेकरारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी……., में वो जर्द पत्ता हूँ बाग काऔर लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में…..जैसी कई गजलों को जयदेव और उस्ताद हयात हुसैन खां ने अपने संगीत सुरों में ढालकर पेश किया। 

बहादुरशाह जफर की जिन्दगी का फलसफा पेश करते इस नाटक में जफर की भूमिका कुशल अभिनेता आकाश पाण्डे व जीशान काजी, जीनत महल की भूमिका में नाज खान, गालिब का चरित्र अतहर नबी और जौक का किरदार में गोपाल सिन्हा ने निभाया। इस जज्बाती और संगीतमय नाटक में गजलगोई का अंदाज दर्शकों को भाया।

 (रीता सिंह की रिपोर्ट)