उज्जैनः हिंदी और हिन्दीत्तर लेखकों को दिया जाने वाला प्रतिष्ठित कुसुमांजलि सम्मान प्रख्यात कवि, उपन्यासकार, रंगकर्मी डॉ प्रभात कुमार भट्टाचार्य को उनके उपन्यास मगरमुहा के लिए प्रदान किया गया. डॉ प्रभात कुमार भट्टाचार्य को यह सम्मान कुसुमांजलि सम्मान समिति के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार व संपादक आलोक मेहता और विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति बालकृष्ण शर्मा के हाथों प्रदान किया गया. डॉ प्रभात कुमार भट्टाचार्य को इस सम्मान के साथ ढाई लाख रुपए मानार्थ चेक भी प्रदान किया गया. इस अवसर पर साहित्यकार प्रमोद त्रिवेदी ने डॉ प्रभात कुमार भट्टाचार्य का परिचय देते हुए कहा कि प्रभात जी ने नाटक, उपन्यास खूब लिखे. उनके उपन्यास फैंटेसी लिए होते हैं. मगरमुहा एक क्षेत्र का नाम नहीं है वरन समूचे परिक्षेत्र को व्यक्त करता है. पूरे मालवा का सम्मान है. विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति और मुख्य अतिथि बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि यह उपलब्धि उज्जैन की उपलब्धि है, मगरमुहा की उपलब्धि है.
कुसुमांजलि साहित्य सम्मान चयन समिति के अध्यक्ष आलोक मेहता ने कहा कि डॉ प्रभात कुमार भट्टाचार्य का घर शान्ति निकेतन से कम नहीं है. जितना लेखन प्रभात जी का रहा है , प्रणम्य है. डॉ प्रभात कुमार भट्टाचार्य ने उज्जैन में रहकर ऋषि की तरह कार्य किया है. आप नाटक लिखते ही नहीं महारथी होकर नाटक के मंचन तक तैयार करवाये. साहित्य में अच्छे कार्य का सम्मान होना चाहिए. याद रहे कि इस सम्मान की स्थापना 2011 में प्रख्यात लेखिका कुसुम अंसल द्वारा देश में साहित्यिक, कलात्मक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु की गई थी. फाउंडेशन द्वारा 2011 से हर वर्ष सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक कृति के लिए दो राष्ट्रीय सम्मान दिये जाते हैं. साहित्यिक कृति के अंतर्गत कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक जैसी विधाओं पर विचार किया जाता है. एक सम्मान हिंदी की साहित्यिक कृति के लिए तथा दूसरा हिंदी के अतिरिक्त भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित अन्य भारतीय भाषा के लिए दिया जाता है.