नई दिल्लीः "हंसी धृतराष्ट्र के अंधे व्यामोह के विरुद्ध-चीत्कार थी!" हंसी' कविता की ये पंक्तियां हिंदी के महत्त्वपूर्ण कवि उद्भ्रांत की हैं जो अपने काल-आख्यान में उनकी क़लम की ताक़त का एक बड़ा परिचय देती हैं. वे हिंदी की ज़मीनी रचनाशीलता से परिचित होने और मूल्यांकित करने के लिए गठित साहित्यिक संस्था हुतकी ओर से अपनी 70वीं वर्षगांठ पर 'गांधी शांति प्रतिष्ठान' में आयोजित 'रचना-पाठ और बातचीत' कार्यक्रम के दौरान अपनी कुछ रचनाओं का पाठ कर रहे थे. उन्होंने इस अवसर पर अपनी शीघ्र प्रकाश्य आत्मकथा 'मैंने जो जिया' के प्रथम खंड 'बीज की यात्रा' का एक मार्मिक अंश भी पढ़ा. उद्भ्रांत पर 'हुत' द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लेखिका निर्मला जैन ने कहा कि उद्भ्रांत जिस तरह सृजनरत हैं, इसी तरह हमेशा रहें, मेरी शुभकामनाएं हमेशा उनके साथ हैं. मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ उपन्यासकार-संपादक विभूति नारायण राय ने कहा कि उद्भ्रांत की सक्रियता ऐसी है कि वे 40-50 किताबें और देकर जाएंगे, उन्हें ढेरों शुभकामनाएं. वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि उद्भ्रांत दशकों पहले से यानी तब से मित्र हैं जब मैंने मुंबई 'जनसत्ता' में उनके काव्य 'स्वयंप्रभा' के दो सर्ग छापे थे. कैसी भी परिस्थिति रही हो उन्होंने लिखना कभी नहीं छोड़ा. वे एक बड़ी थाती देकर जानेवाले लेखक हैं. इस अवसर पर उन्होंने एक दिन पहले नामवर सिंह से मुलाक़ात के दौरान रिकॉर्ड किए गए उनके वक्तव्य का कुछ अंश भी सुनाया, जिसमें नामवर ने कहा था कि "उद्भ्रांत आज़ादी के बाद के बहुत महत्त्वपूर्ण कवि हैं और मैं उनकी पुस्तकों पर बहुत पहले से बोलता रहा हूं. उनका गद्य क्या है, कविता है जिसे सुनकर गले लगाने को जी करता है."  

 

सुपरिचित आलोचक बलि सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि उद्भ्रांत ने तमाम विधाओं में लेखन किया है, अब वे अपनी आत्मकथा भी लिख रहे हैं, जो स्वागत योग्य है. उन्होंने काव्य विधा में महाकाव्य, खंडकाव्य, काव्य-नाटक सहित भरपूर काम किया है. लेकिन उन्होंने कविता के साथ-साथ गद्य में भी उल्लेखनीय काम किया है. इस बात का सबूत उनका उपन्यास 'नक्सल' है. इस उपन्यास से पता चलता है कि वे कौन सी चीज़ें हैं जो किसी को नक्सल बनाती हैं. उन्होंने कहा कि उद्भ्रांत सामाजिक-सांस्कृतिक मोर्चा के साथ-साथ साहित्यिक मोर्चा पर भी डटे रहते हैं. चाहे पत्र लिखने का काम हो, लेख लिखने का या सोशल मीडिया पर संवाद बनाए रखने का. उन्होंने रेखांकित किया कि उद्भ्रांत के यहां मिथकीय संसार से लेकर आधुनिक युग तक की संवेदना अपनी प्रखरता के साथ मौजूद है. कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन पटना के पूर्व निदेशक व साहित्य अध्येता पुरुषोत्तम एन. सिंह ने किया. उन्होंने उद्भ्रांत का विस्तृत परिचय और उनके रचना-संसार से जुड़ी कई उल्लेखनीय बातें भी दर्ज कीं. कार्यक्रम की शुरुआत में उद्भ्रांत की 'पहल-82' में प्रकाशित चर्चित कविता 'बकरामंडी' पर कानपुर की प्रोडक्शन संस्था 'शार्ट मूवीज मेकर्स' द्वारा बनाई गई 10 मिनट की लघु फ़िल्म का प्रदर्शन भी हुआ. युवा कवि कुमार वीरेंद्र ने कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि 'हुत' का उद्देश्य हमेशा नए रचनाकारों सहित उन पर बातचीत करना रहा है, जो महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन उनकी उपेक्षा की जाती है. उद्भ्रांत पर आयोजित इस कार्यक्रम को इसी रूप में देखा जाना चाहिए.