नई दिल्लीः 'माटी की सुगंध' समूह ने एक ऑन लाइन कवि सम्मेलन का आयोजन किया, जो विश्व पर्यावरण दिवस को समर्पित था. इस सम्मेलन में कवियों ने पर्यावरण के के साथ-साथ विभिन्न तरह के प्रदूषणों की चर्चा की जिसमें सांस्कृतिक प्रदूषण भी शामिल था. इस कवि सम्मेलन की अध्यक्षता राष्ट्रीय गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने की. मुख्य अतिथि अनुपिन्द्र सिंह अनूप, विशिष्ट अतिथि शीला गहलावत 'सीरत', केसर शर्मा कमल व कृष्णा आर्या और संयोजक भारत भूषण वर्मा असंध रहे. कवि सम्मेलन का संचालन कवि प्रीतम सिंह प्रीतम ने किया. गीतकार खेमचन्द सहगल ने उत्कृष्ट सरस्वती वंदना प्रस्तुत करके कवि सम्मेलन को अच्छी शुरुआत दी. डॉ जय सिंह आर्य ने अपनी रचना में सांस्कृतिक प्रदूषण पर चोट करते हुए पढ़ा, “aशब्द भी अर्थ अपने बदलने लगे, हो रहा अर्थ का भी क्षरण देखिए..” अनुपिन्द्र सिंह अनूप ने पढ़ा, “साफ़ हवा की थी मिली दाद हमें अनमोल. जीना दूभर कर लिया, ख़ुद हमने विष घोल…” शीला गहलावत 'सीरत' ने संदेश गीत सुनाया, “आओ हम सब मिलकर प्रदूषण मिटायें. स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण बनायें.“
कवि सम्मेलन में पर्यावरण को बचाने की मुहिम पर जोर देते हुए केसर कमल ने पढ़ा, “हम सब मिलकर पेड़ लगायें, एक पेड़ हर घर में लगायें. प्रदूषण ने पृथ्वी जकड़ी, इसको प्रदूषण मुक्त करायें…“डॉ कृष्णा आर्या ने हरियाणवी शैली में एक से बढ़कर एक रचना सुनाकर ख़ूब वाहवाही लूटी. बानगी देखिए, “रै हरिया की बंच रै किताब, वीर मेरे सुणकै आइए रै, रै बीरा आम रै पीपल, नीम तू बड़ का पेड़ लगाइए रै, रै बीरा पेड़ रै जीवन का भगवान, तू इनकी सेवा ठाइए रै…” प्रीतमसिंह प्रीतम ने वृक्षारोपण की महत्ता पर गीत सुनाया, “पेड़ से वृष्टि, वृष्टि से सृष्टि, सृष्टि पिता हर पेड़ बना.आक्सीजन, जीवन, औषध, जल, दाता-रक्षक पेड़ बना….” भारत भूषण वर्मा ने अपनी रचनाओं में प्रदूषण का भयावह चित्र खींचा, “पत्थरों के अब शहर हुए सब, कहर दिखाई देते हैं. दूषितजल, वायु में अब, ज़हर दिखाई देते हैं…” खेमचन्द सहगल ने सुनाया, “इन्सान की फ़ितरत है, जीवों को मिटा देना. जंगलों को जला करके, शहरों को बसा देना…
पृथ्वी है मां सबकी, सबको समझाना है. प्रदूषण कम करके, जीवों को बचाना है…” इनके अतिरिक्त डॉ पंकजवासिनी, तरुणा पुण्डीर 'तरुनिल', श्रीकृष्ण निर्मल, सन्तोष त्रिपाठी, अनिल धीमान पोपट कामचोर, बृजेश सैनी, तेजवीर त्यागी और नरेश लाभ ने भी अपनी कविताएं सुनाईं .