नई दिल्लीः 'इतिहास मात्र घटनाओं का संकुल और महत्त्वाकांक्षियों की नियति के उतार-चढ़ाव का दस्तावेज़ ही नहीं है. उसके विराट मंच पर उभरे काल-प्रेरित अभिनेताओं के मनोजगत की उथल-पुथल से संरचित व्यक्तियों के समझौते-टकराव और घात-प्रतिघात उसकी धारा को प्रभावित करने में निर्णयात्मक भूमिका निभाते हैं.' यह लिखने वाले अध्येता, साहित्यकार, अनुवादक वीरेंद्र कुमार बरनवाल नहीं रहे. उनके निधन से हिंदी में गहन शोध कर रचना करने वाले अ्ध्येताओं का एक बड़ा स्थान खाली हो गया. उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के फूलपुर में 21 अगस्त, 1941 को पैदा हुए वीरेंद्र कुमार बरनवाल ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल की और भारतीय राजस्व सेवा में चयनित हुए. पर इससे पूर्व उन्होंने भोपाल विश्वविद्यालय से क़ानून की पढ़ाई भी की थी.  वीरेंद्र कुमार बरनवाल ने हिंदी में मोहम्मद अली जिन्ना, सर सैयद अहमद खान और महात्मा गांधी पर कई पुस्तकें लिखीं, तो अनुवाद भी किए. उनकी लिखी पुस्तकों में 'हिन्द स्वराज: नव सभ्यता-विमर्श' खास है.
वीरेंद्र कुमार बरनवाल ने महात्मा गांधी पर लिखी अपनी पुस्तक में उनके विचारों और इक्कीसवीं सदी में हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता का गहन विश्लेषण किया था. उन्होंने गांधी के चिंतन पर जॉन रस्किन, टॉल्स्टॉय, हेनरी डेविड थोरो, राल्फ वाल्डो एमरसन, दादा भाई नौरोजी, आरसी दत्त, गोपाल कृष्ण गोखले, महादेव गोविंद रानाडे सरीखे विचारकों के प्रभाव की व्याख्या की, तो बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग, क्वामे एनक्रुमा, केनेथ क्वांडा, डेसमंड टुटु, वाक्लाव हैवेल, जूलियस न्येरेरे, इमरे नागी के अहिंसक संघर्षों में गांधी के विचारों की प्रेरणा को भी रेखांकित किया.  'मुस्लिम नवजागरण और अकबर इलाहाबादी का गांधीनामा' तथा 'जिन्ना: एक पुनर्दृष्टि' जैसी गंभीर और शोधपरक पुस्तकें तो शामिल हैं ही, नोबेल पुरस्कार विजेता अफ्रीकी कवि वोल शियंका की कविताओं का अनुवाद भी शामिल है. बरनवाल ने कई चर्चित विश्व साहित्यकारों के साथ नाइजीरियाई, जापानी और रेड इंडियन समुदाय के कवियों की रचनाओं का भी हिंदी अनुवाद किया था.