पटना,  'कॉग्नीशो पब्लीकेशंस ' और बिहारी धमाका ब्लॉग के संयुक्त तत्वावधान में प्रशान्त रचित कथा-संग्रह अवतारका लोकार्पण टेक्नो हेराल्ड पटना में सम्पन्न हुआ। लोकार्पण के पश्चात एक कवि-गोष्ठी भी आयोजित किया गया। 

लोकार्पण करनेवाले साहित्यकारों में प्रभात सरसिज, भगवती प्रसाद द्विवेदी, शहंशाह आलम, मृदुला शुक्ला, अरुण शाद्वल, घनश्याम, मधुरेश नारायण आदि थे। स्वागत भाषण हेमन्त दास हिमने किया  

अरुण शाद्वल ने लोकार्पित कथा-सग्रह 'अवतार' की कहानियों पर राय प्रकट करते हुए कहा  "कहानियों के विषय-वस्तु में काफी विविधता है जहाँ 'चौक' में एक कचड़े के डिब्बे की जुबानी एक चौक के चौबीस घंटों की कहानी कही गई है वहीं 'चमत्कार' में चुनाव के मौसम में विनिर्दिष्ट जनसमूहों में संसूचित सम्मोहन के खेल को उजागर किया गया है। 'स्वर्ग' बताता है कि दूसरों की मीन-मेख निकालने की बजाय खुद पर ध्यान दकर उसे सुधारने की कोशिश करनी चाहिए.

कवि घनश्याम ने  संग्रह के 'चमत्कार' कहानी पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा  " कथानक, पात्र, वातावरण, घटना-क्रम बहुत संतुलित है.सहज और सरल भाषा-शैली में कथाकार ने सरकारी व्यवस्था और मीडिया का राजनीतिक हित में किए गए दुरुपयोग पर भी निशाना साधा है। "

कवि शहंशाह आलम ने आने संबोधन में कहा  " प्रशांत की लघुकथाएँ हमारे जीवन की लघुकथाएँ हैं। प्रशांत अपनी कथा के सारे पात्र अपने कठिन-कठोर जीवन से जूझते और जीतते दिखाई पड़ते हैं."

भगवती प्रसाद द्विवेदी ने  कथाकार को एक किस्सागोई की विधा में माहिर करार देते हुए  कहा " प्रशांत ने जीवन जीने के दौरान महसूस किये गए गूढ़ अनुभवों को बड़ी ही सरलता से बयाँ कर दिया है यह उनके कौशल का द्योतक है। "

मुख्य अतिथि मृदुला शुक्ला ने भी कथा-संग्रह 'अवतार' पर पूर्व वक्ताओं की बातों से सहमति जताई  जबकि युवा आलोचक सुशील कुमार भारद्वाज ने  कहा " प्रशांत की कथाएँ काफी छोटी होने के वावजूद लघुकथा नहीं बल्कि कहानी  है क्योंकि उनमें अपने कथ्य को कहने के लिए ताना-बाना बुना गया है जो काफी सशक्त है।."

मधुरेश नारायण ने 'अवतारसंग्रह की कहानी 'विरासत' की चर्चा करते हुए कहा कि " दो युवा रेल से यात्रा करते समय देश की सांस्कृतिक विरासत के नाम पर एक दूसरे से झगड़ते रहते हैं लेकिन जब रेलगाड़ी एक स्टेशन पर रुकती है तो भोजन हेतु के.एफ.सी. से भोजन लेकर पाश्चात्य संस्कृति के प्रति अनुरक्ति दिखाते हैं. दर-असल वे न तो हिन्दु देवी देवता के हिमायती हैं न ही अरब सभ्यता के बल्कि मात्र अपने अहं की संतुष्टि हेतु उसकी चर्चा करते हैं और झगड़ते हैं."

हेमन्त दास 'हिम' ने कहा " प्रशांत  समय के साथ शिल्प में और पकड़ बनाते जाएंगे. कहानी 'सबसे बड़ा शत्रु' में लेखक एक कार्यालय में महिला कर्मचारियों के आपसी संवाद के जरिए एक महिला की प्रताड़ना को व्यक्त कर रहे हैं। "लोकार्पण सत्र का संचालन शहंशाह आलम । कवि-गोष्ठी का संचालन सुशील कुमार भारद्वाज ने किया। 

अंत में मीनू अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया।