लखनऊ: ऋषि मुनियों की भूमि, पांडव के अज्ञातवास का स्थान, चारधाम और गंगा का उद्गम का स्थल, ये हिमालय है। हमारी सबसे बड़ी व्यावसायिक जरूरत, सौंदर्य और सबलता के लिए जो आवश्यक है, वो हिमालय है। जब भी हमें अपने अंदर की यात्रा करनी होती है तो हम जिस ओर जाते हैं, वो मार्ग हिमालय है। दरअसल, ये हौसले का हिमालय है। जो हमें जिंदगी के उतारे हुए को पहनना सिखाता है। शुक्रवार को अभिव्यक्ति के मंच पर हौसले का हिमालय सबने देखा। हिमालय के हर उस भाग की यात्रा भी की, जो असल में एक-दूसरे से भिन्न है। आप सोच रहे होंगे, वो कैसे? लेकिन यह सच है। हिमालय उत्तर से पूर्व तक फैला है, पर उत्तरांचल, हिमाचल और अरुणाचल सबका अलग-अलग हिमालय है। हमारा-आपका भी हिमालय है। बस उसे ढूंढने की जरूरत है। संवादी के तीसरे सत्र में विषय था हौसले का हिमालय। वक्ता ऐसे थे जो हौसले का हिमालय खोज कर लाए थे। मंच पर जब ट्रैवलर उमेश पंत और आदित्य अमर ने हिमालय की रूपरेखा खींची तो दर्शक भी पहाड़ों की सैर करने लगे। चोटी पर चढऩे और नीचे उतरने की यात्रा दर्शकों ने करीब 45 मिनट में पूरी की। संचालक प्रशांत कश्यप ने दर्शकों के बीच बतरस में सवालों की चाशनी डाली तो जो जवाब निकला उससे रोमांच के साथ यात्रा की मिठास बढ़ गई। दर्शकों को पांच हजार फीट की ऊंचाई पर ले जाने के बाद उमेश पंत ने अनुभव बयां किया। आप अपने अंदर की यात्रा पर हों तो रास्ते के बारे में कुछ नहीं पता होता। तब कंफर्टजोन से बाहर आने के लिए इनरलाइन पास की जरूरत होती है, हिमालय की यात्रा में यह इनरलाइन पास मिलता है। असल में यह यात्रा आपके पहने हुए को उतार कर जिंदगी के उतारे हुए को पहनने का सफर होता है। सीधे तौर पर जब भी हिमालय की बात होती है तो शिमला, मसूरी, नैनीताल के पहाड़ों का ख्याल आता है। ङ्क्षहदी पट्टी के लोग अमूमन इसी हिमालय से परिचित हैं। पर, पूर्वोत्तर का हिमालय बहुत अलग है। सौंदर्य, संस्कृति, रहन-सहन से सरोकार कराते हुए उमेश दर्शकों को उस हिमालय तक ले गए। कमाल की सुंदरता है, उस हिमालय की। संस्कृति भी यहां से बिल्कुल अलग। ङ्क्षहदी पट्टी के लोग उस हिमालय के प्रति भले ही पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं, पर वह हिमालय सकारात्मक ऊर्जा का भंडार है। उस क्षेत्र में रहने वालों की सबसे बड़ी दिक्कत है भाषा की। नगालैंड में 13 तरह की जनजातियां हैं। सबकी अलग-अलग भाषा है। संवाद का ऐसा मंच वहां भी होना चाहिए, या फिर यहां के मंच पर उनका संवाद हो तो भाषाई दिक्कतें कम हो सकती हैं।

महेन्द्र पाण्डेय