गुवाहाटीः इस साल 'संगमन- 23' गुवाहाटी में संपन्न हुआ, जिसमें देश भर के रचनाकार, कवि, विचारक, चिंतक शामिल हुए. संगमन-23 के विमर्श का विषय था 'आधिपत्यः निर्मिति व विखंडन'. पहले सत्र का संचालन रचनाकार बसंत त्रिपाठी ने किया. उन्होंने कहा कि इधर 15 – 20 वर्षों से हम एक अल्पसंख्यक मनोवृत्ति का शिकार हुए हैं. हम अपना पक्ष रखने में लड़खड़ा रहे हैं.' कहानीकार-चिंतक जितेंद्र भाटिया ने कंप्यूटर प्रस्तुति से देश के कुछ पूंजीपतियों द्वारा की जा रही आर्थिक लूट का कच्चा चिट्ठा खोला. भाषाविद अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी ने 'भाषा व तकनीक का वर्चस्व' विषय पर बात की. उन्होंने कहा, "भाषा पर गूगल का आधिपत्य हो चुका है. वह हमारे डाटा लेकर अपना प्राडक्ट बनाता है और  बिना कोई कीमत चुकाए बेशुमार दौलत कमा रहा है." असमिया कवि नीलिम कुमार ने कहा कि हिंदी का दामन थाम कर ही मैं असमिया लेखक बना हूं. हिंदी सिनेमा ने हिंदी भाषा सीखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है." कवि ने अपनी प्रसिद्ध रचना 'नमक' का पाठ भी किया. "दुख की तरह नमक भी सफेद होता है." जीतेंद्र गुप्त ने रुसो, काल मार्क्स और ग्राम्सी के कथनों का उदाहरण देते हुए हमारे समाज में मौजूद आधिपत्य की बात की. भारत सासने का कहना था, "लेखक आम आदमी है पर वह अपनी कलम से झुका हुआ आसमान उठा सकता है." इस सत्र के प्रारम्भ में कमलेश भट्ट कमल ने संगमन गठन और कार्य पद्धति पर प्रकाश डाला व स्थानीय संयोजक दिनकर कुमार ने आगत अतिथियों का स्वागत किया.

संगमन के दूसरे दिन के सत्र का संचालन असमिया कवयित्री मौसुमी काँदली ने किया. इस सत्र में अरूपा पटंगिया कलिता ने कहा कि "असम में पुरुष लेखकों के आधिपत्य को महिला लेखन ने खत्म किया है." शोधार्थी सत्यम श्रीवास्तव ने आदिवासियों की समस्या पर प्रकाश डाला. विनोद रिंगानिया का मानना था कि पूर्वोत्तर के विभिन्न भाषी लोग बाहरी लोगों के आ जाने से अल्पसंख्यक हो जाने के डर से पीड़ित हैं. अमित शर्मा ने कहा, "प्रेमचंद से पहले किसी भी लेखक ने जाति को मुद्दा नहीं बनाया. मृत्युंजय कुमार ने रंगमंच के क्षेत्र में स्थापित आधिपत्य का खुलासा किया. कृष्ण मोहन झा का मानना था कि आधिपत्य की इकाई मनुष्य ही है और आधार शक्ति है.

संगमन के तीसरे और अंतिम सत्र का संचालन प्रसिद्ध गजलगो और कहानीकार कमलेश भट्ट कमल ने किया. इस सत्र में यशवंत पराशर ने संगीत के क्षेत्र में स्थापित आधिपत्य पर बात कही. असमिया कवयित्री मौसुमी कांमुदी ने चित्रकला के क्षेत्र व्याप्त आधिपत्य का बहुत सूक्ष्मता से खुलासा किया. एडवोकेट हफीज रशीद अहमद चौधरी ने कहा, "जातिगत अस्मिता के टकराव के कारण सेवन सिस्टर का विघटन हो गया." विपिन शर्मा ने सिनेमा क्षेत्र के आधिपत्य की बात उठाई.  मीना सात्रे ने मराठी रंगमंच पर बात की. बसंत त्रिपाठी ने भाषाई वर्चस्व पर बात की, तो उदयभान पाण्डे ने हिंदी साहित्य की चण्डाल चौकड़ी प्रकाशक , सम्पादक , पत्रकार और लेखकों की बखिया उधेड़ी. संगमन का समापन वक्तव्य हमेशा गिरिराज किशोर करते हैं, पर पुत्र के अस्वस्थ होने के कारण वह आ नहीं पाए. इसलिए समापन वक्तव्य प्रियंवद ने दिया. उन्होंने कहा, "मैं गांधी को याद कर रहा हूं. आधिपत्य को तोड़ने के जो हथियार हैं उसके लिए हमें गांधी की जरूरत है." कार्यक्रम के अंत में असम का पारंपरिक बिहू नृत्य प्रस्तुत किया गया.