नई दिल्ली, 4 सितंबर, आज कवि उद्भ्रांत की सत्तरवीं वर्षगांठ है, यानी आज वह वह एकहत्तर के हो गए. उद्भ्रांत ने एक कवि, गीतकार, नवगीतकार, ग़ज़लगो, कथाकार, समीक्षक, संपादक, अनुवादक एवं बाल साहित्यकार के रूप में हिंदी साहित्य की अच्छी-खासी सेवा की है. उनका असली नाम रमाकांत शर्मा 'उद्भ्रांत' है. उनका जन्म 4 सितंबर, 1948 को राजस्थान के नवलगढ़ जिले में हुआ था. उन्होंने क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर से हिंदी में स्नातकोत्तर और अजमेर से विद्यावाचस्पति की उपाधि प्राप्त की. पुणे के प्रसिद्ध फिल्म इंस्टीट्यूट से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वह कानपुर में ही एक हिंदी अखबार से जुड़ गए. बाद में पटना में हिंदी अधिकारी रहने के दौरान प्रगतिशील कवि बाबा नागार्जुन एवं खगेन्द्र ठाकुर के संपर्क में आए और फिर कानपुर लौटने के बाद सर्जना प्रकाशनका संचालन किया. अप्रैल 1991 से भारतीय प्रसारण सेवा के पहले बैच के अधिकारी के रूप में दूरदर्शन के पटना, इम्फाल, मुंबई और गोरखपुर केंद्रों में कार्य करने के बाद वह नई दिल्ली आ गए. यहां आकाशवाणी और दूरदर्शन महानिदेशालय में वरिष्ठ पदों पर काम करने के बाद यहीं से सेवानिवृत्त हुए. एक रचनाकार के रूप में उद्भ्रांत ने नवगीतकार एवं हिंदी गजलगो के रूप में शुरुआत की और एक सफल कवि के रूप में स्थापित हुए.

 

इनका महाकाव्‍य 'त्रेता' काफी चर्चित है. अपने सृजन-कर्म के लिए उन्हें अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक सम्मानों-पुरस्कारों से विभूषित किया जा चुका है, जिनमें नवगीत संग्रह देह चांदनीको उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का निराला पुरस्कार’, शिवमंगल सिंह सुमन पुरस्कार, बाल साहित्यकार परिषद लखनऊ से बाल साहित्य श्री’, ‘लेकिन यह गीत नहींको हिंदी अकादमी दिल्ली का साहित्यिक कृति सम्मानऔर मुंबई का प्रियदर्शिनी पुरस्कारशामिल है. उनकी रचना स्वयंप्रभापर उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने जयशंकर प्रसाद अनुशंसा पुरस्कारदेने की घोषणा की थी, जिसे उन्होंने अस्‍वीकार कर दिया. कवि हरिवंशराय बच्चन द्वारा खुद को लिखे गए सौ से भी अधिक पत्रों का संपादन कर उद्भ्रांत ने बच्चन जी के अनछुए पहलुओं को भी प्रकाशित कराया. ये पत्र व्यक्तिगत होने के साथ-साथ साहित्य, कला, संस्कृति, धर्म, अध्यात्म और दर्शन के अनेक अनछुए बिंबों का दस्तावेज भी हैं. आलोचक डॉ नामवर सिंह ने कभी उद्भ्रांत की तीन काव्य-कृतियों अस्ति’ (कविता संग्रह), ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) एवं राधामाधव’ (प्रबंध काव्य) के लोकार्पण अवसर पर समय, समाज, मिथक: उद्भ्रांत का कवि-कर्मविषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा था, "कवि उद्भ्रांत की एक साथ तीन नयी काव्य-कृतियों का लोकार्पण अद्भुत ही नहीं ऐतिहासिक भी है. इतनी कविताओं का लिखना उनकी प्रतिभा का विस्फोट है. रवीन्द्रनाथ में भी ऐसा ही विस्फोट हुआ था, साथ ही इनमें रचनाकार की सर्जनात्मक ऊर्जा की भी दाद देनी होगी.’’

 

जागरण हिंदी की ओर से कवि उद्भ्रांत को जन्मदिन की शुभकामनाएं.