पटना 27 अगस्त। साहित्यिक-सांस्कृतिक समूह 'आगमन' के बैनर तले गांधी मैदान में काव्य पाठ का आयोजन किया गया। काव्य पाठ में कई कवियों-कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।

 

कवि मधुरेश नारायण ने सावन पर गीत सुनाया 

हरी चुनरिया ओढ़ के धरती सावन में इतरायी

आतुर धरा नभ से मिलने को लेकर रही अंगड़ाई

कुमारी स्मृति की रचना थी

"जो कालजयी कहलाते हैं, वो कभी हार नहीं मानते,

न कभी विचलित  होते हैं, अपने कर्म पथ से"

कवियत्री वीणाश्री ने सुनाया कि 

"स्त्री सिर्फ तब तक तुम्हारी होती है

जब तक वो तुमसे रूठती और लड़ लेती है..!"

कवि संजय 'संज' ने एक मजबूत इरादों से लवरेज कविता सुनाया कि 

''उडना चाहता हूं आसमानों में

शुमार होना चाहता हूं कारनामों में

इंसानियत बची है कम अब इंसानों में"

श्रीमती कृष्णा सिंह ने स्त्रियों केंद्र कर अपनी ऊनी रचना का पाठ किया "एक दिन मैंने पूछा अपनी माता से कि हे माता/तुमने मुझे इस जालिम जमाने की जमीन पर जन्म क्यों दिया।

युवा कवयित्री नेहा नुपुर  की रचना स्वीकार व बदलाव की बात करती है।

" कुछ जो आप बदल न सकें स्वीकार कीजिए

कुछ जो आप स्वीकार न कर सकें बदल दीजिये"

ज्योति मिश्रा ने सावन को अपनी रचना का आधार बनाया 

"मस्त मलंग फकीर हैं हम तो 

ना कछु अपना है न पराया 

जो कुछ मिलता खा पी लेते

चुपड़ी पर नहिं जी ललचाया

प्रकाश यादव ' निर्भीक ' ने समाज से सवाल करती कविता पेश किया 

"क्यों पैदा हुई मैं उस जगह 

जहाँ महफूज नहीं मेरी आबरू"

चित्रकार सिद्धेश्वर ने भी दहेज प्रथा पर अपने विचार को शेरों में ढाला वहीं हास्य कवि विश्वनाथ वर्मा ने  दहेज प्रथा पर व्यंग्यात्मक रचना सुनाई।

नसीम अख्तर के शेर थे

" अपने ही घर की तबाही से हुए मशहूर हम 

क्या गिला करते किसी से ख़ुद ही बने दस्तूर हम

खिंच गई ऐसी लकीरें हर दरो दीवार पर

रफ्ता-रफ्ता हो गए एक दूसरे से दूर हम"

सुनील कुमार ने बारिश और मौसम को आधार बनाकर अपनी ग़ज़ल का पाठ किया 

" कजरारे नैन उसके माथे पे बिंदियाँ है

आज वो गिराती नज़रों से बिजलियाँ है"

युवा कवि विपुल ने सुनाया- 

"सूरज तो पूरा निकला था

किरणें आड़ी तिरछी क्यों

चाँद तो पूर्ण वाला था

ये अमा सिसक कर महकी क्यों?"

युवा रचनाकार कृष्णकांत ने तरन्नुम में  गाकर सुनाया।  कई अन्य कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।

श्रीमती कृष्णा सिंह ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि '' यह आयोजन बहुत उत्साहित करने वाला है जिससे ना सिर्फ स्थापित कवियों और रचनाकारों को एक अंतरराष्ट्रीय पहचान रखने वाली संस्था का मंच मिलेगा अपितु नवोदित रचनाकारों को भी सीखने और प्रदर्शन करने का शुभ अवसर मिलेगा। " उन्होंने आगमन का बहुत जोश से स्वागत कर अपनी शुभकामनाएं दीं।

 संचालन वीणाश्री हेंब्रम जबकि धन्यवाद ज्ञापन कवि संजय 'संज' एवं प्रकाश यादव निर्भीक ने संयुक्त रूप से किया।