नई दिल्लीः राजधानी में उपस्थित साहित्यकारों का जमावड़ा प्रख्यात कवि अशोक वाजपेयी के काव्य पाठ के लिए डायलाग नाम से कार्यक्रम एकेडमी आफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर के सौजन्य से हुआ, जहां वाजपेयी के काव्यपाठ के अलावा 'यह समय कवि बने रहने का है' विषय पर दिविक रमेश, राकेश रेणु और ओम निश्चल ने अपने विचार रखे. विषय की प्रस्तावना मिथिलेश श्रीवास्तव ने रखी. संचालन नीरज मिश्र और स्वागत आलोक मिश्र ने किया. काव्यपाठ के पश्चात अशोक वाजपेयी ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैं पहले खुद अपने ड्राफ्ट का कवि हूं. समय की कमी की वजह से खुद अपनी कविताओं का पहला आलोचक मैं खुद हूं. आंतरिक आलोचना के द्वारा मैं खुद अपनी कविताओं को गढ़ता रहा.कवि कविता में तीन तरह से खेलता है. पहले वह बिंबों और प्रतीकों से,फिर विचारों और अभिप्रायों से और साथ ही लोक में प्रचलित धारणाओं से खेलता है. एक कवि अपने आसपास के घटनाओं के प्रति संवेदनशील होकर उन्हें व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर गहराई से अनुभव करता है. उन्होंने कहा कि भाषा में वस्तु का होना बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि कविता का काम वस्तुस्थिति का आदर करना है.
अध्यक्षीय वक्तव्य में कवि उपेंद्र कुमार ने कहा कि अद्भुत कविता सुनना अच्छी कविता सुनने से भी अच्छा होता है. समाज में दिखने वाली सारी विशेषता अशोक वाजपेयी की कविता में मुख्य रूप से परिलक्षित होती हैं. कवि मिथिलेश श्रीवास्तव ने कहा कि अशोक वाजपेयी ने प्रतिरोध का जो स्वर खड़ा किया है, उसकी गूंज और गमक अभी भी हमें सुनाई देती है. कवि राकेश रेणु ने कहा कि वाजपेयी की कविता की ओर लौटना समाज के लिए समय की जरूरत है. डॉ ओम निश्चल ने कहा कि वाजपेयी की कविता समय की अलक्षित आहटों को सुनती है और उसे निर्भयता से उदघाटित करती है. कवि दिविक रमेश जी कहा कि शब्द की मौलिकता और गहनता वाजपेयी के काव्यों में नज़र आता है। वाजपेयी जी का पूरा जीवन साहित्य और समाज को बचाने और संरक्षित करने में लगा है. धन्यवाद ज्ञापन युवा स्वर अंशु कुमार चौधरी ने किया.