वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग शोधार्थियों के उपक्रम 'रचना समय' ने विभाग के सभागार में चर्चित कथाकार अलका सरावगी के रचना कर्म पर केंद्रित एक परिचर्चा का आयोजन किया. जिसमें स्वयं अलका सरावगी मौजूद रहीं. वहां उन्होंने लेखकीय वक्तव्य के अलावा अपने हाल ही में प्रकशित उपन्यास 'एक सच्ची झूठी गाथा' के कुछ महत्वपूर्ण अंशों का पाठ करने के साथ ही छात्रों और अन्य सुधी श्रोताओं से रचनात्मक संवाद किया. कार्यक्रम के दौरान अनूप कुमार मिश्र, डॉ नीरज खरे, प्रोफेसर आशीष त्रिपाठी और प्रो्फेसर चंद्रकला त्रिपाठी के व्याख्यान हुए. प्रस्तावना वक्तव्य शोध छात्र अनूप कुमार मिश्र ने पढ़ा और संचालन मानवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया. प्रस्तावना वक्तव्य में अनूप कुमार मिश्र ने कहा कि हाल ही में प्रकाशित अलका सरावगी के उपन्यास 'एक सच्ची झूठी गाथा' में एक खास किस्म की रूमानियत से उत्पन्न भाववाद का प्रभाव है. उन्होंने कहा कि वे अपने तरीके से प्रचलित आधुनिकता का एक प्रत्याख्यान रचती हैं. युवा कथालोचक डॉ नीरज खरे ने कहा कि अलका सरावगी आधुनिक लेखिकाओं में अग्रणी है. आधुनिकता के सभी पक्षों को उनकी रचनाओं में देखा जा सकता है. एब्सर्ड नाटकों के हवाले से उन्होंने एक सच्ची झूठी गाथा का मूल्यांकन प्रस्तुत किया.

प्रोफेसर आशीष त्रिपाठी ने कहा कि अलका सरावगी अपने उपन्यासों में कहने की एक बिल्कुल भिन्न शैली अपनाती हैं. वे पारंपरिक रूप में कुछ नहीं कहतीं, वे आधुनिकता के साथ विकसित हुई क्रमबद्धता का नकार करती हैं. आशीष त्रिपाठी ने कहा कि अलका सरावगी के इस उपन्यास पर उत्तर-आधुनिकतावाद के प्रभाव में जन्मी अनिश्चितता के बावजूद एक पक्ष प्रस्तुत किया गया है, जो आज के सामाजिक- राजनैतिक परिदृश्य में ज्यादा प्रासंगिक और जरूरी है. प्रोफेसर चंद्रकला त्रिपाठी ने कहा कि अलका सरावगी अपने परिवेश की घटनाओं को अपने कथा साहित्य में आधार बनाती हैं. इनकी रचनाओं का मुख्य केंद्र मारवाड़ी और बंगाल का भद्रलोक है. उनके मुताबिक अलका सरावगी के उपन्यास संत्रास, अजनबीपन, अविश्वास और घटती हुई मनुष्यता के संदर्भ लेते हुए एक समाज की गाथा रचते हैं. इनका कथा साहित्य विविधता की गाथा भी रचता है. सभागार में हिंदी विभाग के प्रोफेसर अवधेश प्रधान, वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी, सदानंद शाही, मनोज कुमार सिंह, डॉ नीरज खरे, डॉ बिपिन कुमार, प्राचीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर दिनेश कुमार ओझा एवं शहर के गणमान्य नागरिक और साहित्यप्रेमियों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही. बड़ी संख्या में विभाग के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे. इनमें से कई ने संवाद सत्र में हिस्सा भी लिया.

(रिपोर्ट अमरेश पांडेय के सौजन्य से)