सिलीगुड़ी: पश्चिम बंगाल सहित समूचे पूर्वोत्तर में हिंदी साहित्य से जुड़ी गतिविधियां हिंदी भाषी इलाकों से कमतर नहीं हैं. कोलकाता तो आरंभ से ही हिंदी साहित्य का कई अर्थों में महत्वपूर्ण केंद्र रहा है, पर आसनसोल, गुवाहाटी और सिलीगुड़ी भी कम नहीं हैं हिंदी साहित्य से जुड़ी गोष्ठियों, सभाओं के आयोजनों और हिंदी भाषी दिग्गज लेखकों के आवाजाही के कारण इस इलाके के लोगों का ध्यान हिंदी की तरफ बढ़ा है. दहाई की संख्या में इस क्षेत्र के लोगों ने हिंदी साहित्य में अपनी राष्ट्रीय उपस्थिति दर्ज की है. इसी तरह की गतिविधियों के बीच 'आपका तिस्ता हिमालय' मासिक पत्रिका द्वारा कथाकार शिवमूर्ति को 'अमरावती सृजन पुरस्कार 2018' दिए जाने के क्रम में एक बड़ा आयोजन किया. शिवमूर्ति के ही शब्दों में वक्ताओं का संस्कृतनिष्ठ शुद्ध हिंदी उच्चारण और सायंकालीन काव्य गोष्ठी देख यह लगा ही नहीं कि मैं ग़ैर हिंदी भाषी क्षेत्र में हूं. शिवमूर्ति ने कहा कि जो अन्याय के खिलाफ लिखे, वही लेखक है. सम्मान समारोह के दौरान शिवमूर्ति पर आधारित पत्रिका के विशेषांक का भी विमोचन हुआ. स्वागत करते हुए पत्रिका के संपादक डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह ने शिवमूर्ति को आधुनिक काल का प्रेमचंद करार देते हुए कहा कि वह जन सरोकारों के सच्चे कथाकार हैं. पत्रिका की विद्वत परिषद के अध्यक्ष देवेन्द्रनाथ शुक्ल के अलावा मुख्य वक्ता के रूप में आसनसोल गर्ल्स कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि शिवमूर्ति का साहित्य इंडिया के विरुद्ध भारत के पक्ष में खड़ा है. आयोजक पत्रिका के संरक्षक समाज की पूर्णतया बाजार पर निर्भरता को अत्यंत चिंतनीय बताया.
इस अवसर पर कथाकार शिवमूर्ति की अध्यक्षता में 'चुनौतियों का समकाल और साहित्य' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी भी हुई. सिलीगुड़ी कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार साव ने संचालक के तौर पर बीज वक्तव्य रखते हुए कहा कि एक ओर तमाम विमर्श हैं, तो दूसरी ओर राजनीतिक एवं वैधानिक परिणति, जिसके प्रति हमारे आचरण का युक्तिसंगत बने रहना दुर्लभ होता जा रहा है. इसके साथ ही अनंत विवशता के समक्ष परास्त होने की मानसिकता भी विविध आयामों में घनीभूत होती जा रही है. ऐसे में साहित्य के प्रति साहित्यकार की भूमिका अतिरिक्त सजगता की मांग करती है. बागडोगरा कॉलेज की सहायक प्राध्यापिका पूनम सिंह, गवर्नमेंट कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर रहीम मियां,डॉ. मुन्ना लाल प्रसाद आदि ने साहित्य के सियासीकरण पर चिंता जताई और कहा कि आज राजनेता और साहित्यकार के मंच में कोई अंतर नहीं रह गया है, तो साथ ही पाठक साहित्य से ही दूर नहीं हो गए बल्कि बाजार की गिरफ्त में अपने दायित्व से भी बेखबर हो गए हैं. पुरस्कार एवं सम्मान सत्र के अध्यक्ष सेना के खुफिया विभाग के पूर्व अधिकारी भागीरथ दे ने सबसे बड़ी चुनौती यह बताया कि आज युवा पीढ़ी के पास स्वयं के लिए कोई भावी योजना नहीं है. ऐसे में समाज और राष्ट्र की संरचना स्वयं में एक अनुत्तरित प्रश्न है. इस अवसर पर साहित्यकार डॉ. भीखी प्रसाद 'वीरेंद्र', डॉ. ओमप्रकाश पांडेय, सीवी कार्की, समाजसेवी आरके गोयल, शशिभूषण द्विवेदी, रंजना श्रीवास्तव, डॉ. वंदना गुप्ता, अर्चना शर्मा, मंटू कुमार, गौतम लामा, सुनीता प्रधान, संतोष कुमार क्रांति, बबीता अग्रवाल एवं अन्य कवि साहित्यकार तथा बुद्धिजीवी उपस्थित रहे. संगोष्ठी का संचालन शिक्षक दीपू शर्मा ने किया. सिलीगुड़ी महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक सहभागिता निभाई. इसी आयोजन में करण सिंह जैन को 'अमरावती-रघुबीर सामाजिक सांस्कतिक उन्नयन सम्मान 2018' भी दिया गया.