नई दिल्लीः इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में अभय मिश्रा के वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास 'माटी मानुस चून' का लोकार्पण व परिचर्चा हुई, जिसमें रामबहादुर राय,  डॉ सच्चिदानंद जोशी, प्रो. मौली कौशल, सोपान जोशी ने अपने विचार रखे. संचालन डॉ रमेश चन्द्र गौड़ ने किया. कार्यक्रम में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं रचनाकार अनुपम मिश्र की पत्नी मंजू मिश्र भी उपस्थित थीं. मौली कौशल ने पर्यावरण की दयनीय स्थिति पर रोशनी डाली. उन्होंने कहा कि हालाँकि उपन्यास सन् 2095 में शुरू होता है, लेकिन पर्यावरण की दुर्दशा का चित्रण हमारे वर्तमान काल का है. पुस्तक में गिरमिटिया देशों में जन्मी नयी पीढ़ी के दर्द का आख्यान भी है. सोपान जोशी ने भारतीय नदियों के प्रति राजनीतिक उदासीनता को रेखांकित किया. सच्चिदानन्द जोशी ने 'जल से जुड़े' अभय मिश्रा की तुलना तपस्वी भागीरथ से की जिन्होंने विश्व में गंगा की पवित्रता के लिये तप किया.
राम बहादुर राय ने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि पुस्तक पढ़ते हुए इंटेलिजेन्स एजेन्सी के क़ाबिल अफ़सर मलय कृष्ण धर की याद आई, जिन्होंने गैंगलैंड डेमोक्रेसी में ज़मीनी अपराधों का पर्दाफ़ाश किया है. 'माटी मानुष चून' भी इसी तरह गंगा नदी के प्रति हो रहे अन्याय को रेखांकित करती है. धन्यवाद ज्ञापन करते हुए वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने कहा कि 'नदी के इर्द-गिर्द का समाज' बुनकर एक नए तरह की उपन्यास की रचना की गई है. यह स्वागत योग्य कदम है कि आज की युवा प्रतिभाओं एवं वरिष्ठ लेखकों द्वारा न केवल जीवन की समस्याओं पर वरन् पर्यावरण, संस्कृति भाषा, शिक्षा आदि विषयों पर बेहतरीन पुस्तकें लिखीं जा रही हैं. इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पर्यावरणविद् अनुमप मिश्र और उनके काम को शिद्दत से याद करते हुए अभय मिश्रा को उन्हीं की परम्परा का भविष्य माना गया.