वाराणसीः हमें महिला सशक्तीकरण अपने आस-पास दिखता अवश्य है, लेकिन क्या हम इसका सही मायने में मूल्यांकन कर पा रहे हैं कि वह सशक्तीकरण सिर्फ़ सतही तो नहीं है? जहां एक तरफ़ हम 'परिवर्तन संसार का नियम है' का पाठ पढ़ाने वाले सामाजिक ताने-बाने को ढोते चले जा रहे हैं, वहीं, उसी समाज में परिवर्तन की बात करने वाली महिला पर ही क्यों सवाल खड़े करने लगते हैं? ऐसे ही तमाम सवालों का जवाब खोजती एक परिचर्चा आयोजित हुई. अवसर था काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वित्त अधिकारी के पद पर तैनात भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी डॉ अभय कुमार ठाकुर की पुस्तक 'स्त्रियों का अमृत महोत्सव कब होगा?' के ऑनलाइन लोकार्पण का. वाणी प्रकाशन द्वारा हाल ही में प्रकाशित यह पुस्तक समय और समाज से एक ज़रूरी हस्तक्षेप की अपेक्षा करती है. पुस्तक की योजना और उसके उद्देश्यों पर बात करते हुए डॉ अभय ठाकुर ने कहा कि यह पुस्तक उनके छात्र जीवन से लेकर एक प्रशासनिक अधिकारी तक की यात्रा के विभिन्न पड़ावों का चिन्तन है. कोरोना काल में आयी त्रासदी और उस दौरान कामगार महिलाओं के लिए उत्पन्न संकटों ने उनका ध्यान इस ओर आकर्षित किया. एक ओर देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. वहीं आज भी एक स्त्री अपने अधिकार के लिए संघर्ष करती है. यह पुस्तक इन्हीं अन्तर्विरोधों की एक पड़ताल है.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन केन्द्र की पूर्व समन्वयक प्रो रीता सिंह ने इस कृति के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इसका शीर्षक एक सवाल है और यह सवाल ठीक वैसा ही है जैसे मानवाधिकारों के बीच में महिला अधिकारों का सवाल खड़ा होता है. उन्होंने कहा कि स्त्रियों को अपने स्वप्न बदलने होंगे क्योंकि जैसा स्वप्न होगा वैसी वैचारिकी और जैसी वैचारिकी रहेगी समाज वैसा ही बनेगा. स्त्री क्या होना चाहती है, इसका फ़ैसला स्त्री स्वयं करेगी.दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज के आचार्य डॉ रामेश्वर राय ने अपने सुचिन्तित वक्तव्य में कृति की एक शानदार समीक्षा रखी और इस पुस्तक को विचारों की एक पोटली बताया. उन्होंने कहा कि पुस्तक के शीर्षक में जो सवाल निहित है, वह परिवर्तन और विकास के दावेदारों से किया गया सवाल है. हैदराबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो गजेन्द्र पाठक ने कहा कि अभय के लेखन में विजयदेवनारायण साही की चिन्तन प्रक्रिया झलकती है. वे उस भूमि से आते हैं जहां गार्गी, मैत्रेयी जैसी स्त्रियों ने जन्म लिया है, अतः स्त्री के अधिकारों की बात उनके द्वारा किया जाना स्वाभाविक ही है. दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज की आचार्य डॉ रेणु अरोड़ा ने अभय ठाकुर को बधाई देते हुए कहा कि यह पुस्तक एक सवाल से शुरू होती है और यह सवाल उस बेचैनी की पहली सीढ़ी है कि आख़िर यह सब ऐसा क्यों है! वाणी प्रकाशन समूह की ओर से कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल ने परिचर्चा में उपस्थिति दर्ज की. कार्यक्रम का संचालन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शोध छात्र सुशान्त कुमार शर्मा ने किया.
(प्रेवि)