इंदौर: अगर भूले से आ जाती हवाएं बंद कमरे में / तो घुट कर मर नहीं पाती दुआएं बन्द कमरे में… ऐसी अनगिनत पंक्तियां लिख भारतीय काव्य मंच पर अपनी अलग छाप छोड़ने वाले कवि, गीतकार सर्वेश चंदौसी के निधन पर साहित्य जगत में शोक है. 1 जुलाई, 1949 को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के चन्दौसी में जन्में सर्वेश कुमार ने देश भर के काव्य मंचों पर अपनी प्रस्तुति दी. इसी वर्ष विश्व पुस्तक मेला 2020 में उनकी 99 किताबों का एक साथ विमोचन हुआ, जो एक तरह का विश्व कीर्तिमान था. वह इस उम्र में भी बेहद सक्रिय थे. कुछ दिनों पूर्व ही उन्होंने अपनी एक किताब लिखकर पूरी की, जो अभी प्रकाशनाधीन हैं. इंदौर की मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ अर्पण जैन 'अविचल' ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि 'सर्वेश चंदौसी का आकस्मिक निधन हम सबके तथा देश की साहित्यिक बिरादरी के लिए अपूरणीय क्षति है.

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के अन्य सदस्यों महासचिव कमलेश कमल, उपाध्यक्ष डॉ नीना जोशी, राष्ट्रीय सचिव गणतंत्र ओजस्वी, कोषाध्यक्ष शिखा जैन, कार्यकारिणी सदस्य मुकेश मोलवा, मृदुल जोशी व हिन्दी योद्धा जलज व्यास, भावना शर्मा, नितेश गुप्ता, लक्ष्मण जाधव, गिरीश चावला, रश्मिलता मिश्रा, कमला ज़ीनत, अलका रानी अग्रवाल, उर्मिला शर्मा, डॉ मनीषा जैन, अंजू चौधरी, मंजुली प्रकाशन के सुमित भार्गव आदि तमाम सदस्यों ने गहरा दु:ख व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की. गाज़ियाबाद के देवप्रभा प्रकाशन से जुड़े ग़ज़लकार और कवि डॉ चेतन आनंद ने भी सर्वेश चंदौसी के निधन को साहित्य जगत की एक बड़ी क्षति बताकर इस बात पर दुख जाहिर किया है कि कोरोना महामारी के चलते साहित्य जगत अपने चहेते रचनाकारों को भी अंतिम समय में सशरीर उपस्थित होकर श्रद्धांजलि नहीं दे पा रहा.