नई दिल्लीः कोरोना काल ने जैसे सभी बड़े लेखकों की शख्सियत को ऑनलाइन समेट दिया है. फिर चाहे वे राष्ट्रीय गीत के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ही क्यों न हों. हमेशा की तरह इस साल भी बंकिम बाबू सोशल मीडिया, खासकर ट्वीटर पर खूब याद किए गए. चूंकि उनके जन्मदिन की तिथि को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है, इसलिए कोई 26 जून तो कोई 27 जून को उनकी जयंती मनाता है. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जहां अपने ट्वीट में लिखा 'प्रख्यात उपन्यासकार, महान कवि, राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' के रचियता बंकिम चंद्र चटर्जी जी की जयंती पर उन्हें नमन.' वहीं मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की फोटो के साथ लिखा, 'अपनी रचनाओं से जन-जन में राष्ट्रभक्ति व एकता की भावना जागृत करने वाले साहित्यकार श्री 'बंकिम चन्द्र चटर्जी' जी की जयंती पर नमन.'
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय बंगला के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार तो थे ही, दूसरी भाषाओं पर भी उनके लेखन का व्यापक प्रभाव पड़ा. सरकारी नौकरी में होने के कारण बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने साहित्य के माध्यम से स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए जागृति का संकल्प लिया. रबीन्द्रनाथ ठाकुर उन्हें अपना गुरु मानते थे. उन्होंने कहा था  'बंकिम बंगला लेखकों के गुरु और बंगला पाठकों के मित्र हैं.' बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय का सबसे चर्चित उपन्यास 'आनंदमठ' 1882 में प्रकाशित हुआ, जिससे प्रसिद्ध गीत 'वंदे मातरम्' लिया गया है. हालांकि बंकिमचंद्र के जीवनकाल में वंदे मातरम् को ज्यादा ख्याति नहीं हासिल हुई, लेकिन सच्चाई यही है कि भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, पं. रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्लाह खान जैसे क्रांतिकारियों ने इस गीत को गाते हुए ही फांसी का फंदा चूमा था. स्वयं गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इसकी खूबसूरत धुन बनाई थी. लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल ने 'वंदे मातरम्' नाम से राष्ट्रवादी पत्रिकाएं निकालीं. 24 जनवरी, 1950 वह दिन था जब संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने ऐलान किया कि वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया जा रहा है.