नई दिल्ली: साहित्य अकादमी से सम्मानित लेखिका नासिरा शर्मा के एफ्रो-एशियाई साहित्य पर आधारित छह खंडों में प्रकाशित उपन्यास 'अदब में बाईं पसली' पर राजकमल प्रकाशन द्वारा साहित्य अकादमी सभागार में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें लेखिका सहित प्रो. अख्तर हुसैन, डॉ. अशोक तिवारी, डॉ. खुर्शीद इमाम, प्रो. ख्वाजा मोहम्मद इकरामुदीन, प्रो. रिजवानूररहमान और डॉ.बलराम शुक्ल ने आदि अपने विचार रखे. इन किताबों के बारे में लेखिका नासिरा शर्मा ने कहा कि इनकी एक-एक लाइन मेरी रूह से निकली है. जिन देशों में मैं गई वहां की कला, साहित्य व संस्कृति को 35 वर्षों में लिखा. चाहे वह अनुवाद हो, लेख, कहानी, निबंध, उपन्यास हो सब कुछ पाठकों तक इन छह खंडो में पहुंचाने का प्रयास किया है. इन खंडों के सभी रचनाकार अपनी भाषा के महत्त्वपूर्ण रचनाकार हैं और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं.प्रो. अख्तर हुसैन ने एफ्रो एशियाई लघु उपन्यास पर अपना मत रखते हुए कहा, “लघु उपन्यासों का लेखिका ने जिस तरह अनुवाद किया है, वह अद्भुत है. परशियन से हिंदी में अनुवाद करना इतना आसान नहीं है.डॉ. अशोक तिवारी ने एफ्रो एशियाई  नाटक एवं बुद्धजीवियों से बातचीत वाले खंड पर कहा, “यह पुस्तक 'अदब में बाईं पसली' अपने नाम में ही एक रुपक लिए हुए है. लेखिका ने बड़े धैर्य, गहन शोध और व्यापक तरीके से लिखा है और खूबसूरत शब्दों के चयन से नाटकों के पात्रों को जीवंत किया है."

डॉ. खुर्शीद इमाम ने एफ्रो एशियाई कहानियों पर कहा, “इजराइल हिब्रू की कहानियों को हिंदी में लाने का लेखिका का काम काबिलेतारीफ है. मैं चाहता हूं कि हिब्रू की और कहानियां भारतीयों के सामने आयें." प्रो. ख्वाजा मोहम्मद इकरामुदीन ने भारतीयेतर उर्दू कहानियों पर अपने मत रखते हुए कहा, “ख्वाब और सच में जो फर्क होता है वह इन खंडों में नजर आता है. किताब को बड़ी खूबसूरती और कम लब्जों में बेहतर से बेहतर शब्दों से सजाया है.प्रो बलराम शुक्ल ने एफ्रो एशियाई कविताएं खंड पर कहा, “मध्य पूर्व की भाषाओँ के कवि प्रमाणिक रूप से हमारे सामने आयें यह जरूरी है. गद्यकाव्य की लेखिका होने के बावजूद इन कविताओं को बड़ी संगीतमय तरीके से लिखा गया है. प्रो. रिजवाननूररहमान ने कहा, “मध्य एशियाई मुल्कों के साहित्य पर भारत में इतने व्यापक तरीके से पहली बार लिखा गया है. इन खंडो में एक बहुत बड़ा हिस्सा अरबी का है, जिनमें कवियों का चुनाव बड़े ध्यानपूर्वक किया गया है. भारत में हिंदी, उर्दू दोनों भाषा के लोगों के लिए ये पुस्तकें पढ़ने लायक हैंं.संचालक ओम निश्चल ने कहा ,“लेखिका ने इस पुस्तक के जरिये  साहित्य में ऐसे काम को अंजाम दिया है जो बड़ी संस्थाओं के वश का भी नहीं है. मध्यपूर्व एशियाई व पूर्वी मुल्कों  के साहित्य की इस सीरीज को उन्होंने 'अदब की बाईं पसली' कहा है, जिसका अर्थ यह कि जीवन और अदब दोनों में स्त्रीं-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं." राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने दावा किया कि यह पुस्तक प्रकाशित करना एक बड़ी चुनौती था. एशियाई महाद्वीप के देशों के साहित्य का अनुवाद हिंदी में न के बराबर हुआ है. यह प्रयोग हिंदी साहित्य में पहली बार हुआ है.