हरदोईः स्थानीय डॉ राममनोहर लोहिया महाविद्यालय, अल्लीपुर में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् का 16वां त्रैवार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन संपन्न हुआ. अधिवेशन में 'साहित्य का प्रदेय' विषय पर भारतीय भाषाओं के देश भर से जुटे साहित्यकारों ने चर्चा की. अधिवेशन का उद्घाटन कन्नड़ उपन्यासकार एसएल भैरप्पा ने दीप प्रज्जवलित कर किया. उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए भैरप्पा ने कहा कि भारत की समृद्ध ज्ञान परम्परा रही है. हमारे पास पौराणिक साहित्य का विपुल भंडार है. रामायण आदि महाकाव्य हैं. प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू कम्युनिज्म से प्रभावित थे. सरकारी संस्थाओं पर योजनाबद्ध ढंग से कम्युनिस्टों ने कब्जा किया. उन्होंने कहा कि साहित्य का उद्देश्य है जीवन-मूल्यों को प्रतिष्ठित करना. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा कि अंग्रेजों ने सुनियोजित तरीके से भारत एक राष्ट्र नहीं है और आर्य बाहर से आए इत्यादि मनगढ़ंत बातें फैलाई. आज यह सब बातें असत्य सिद्ध हो चुकी हैं. भारत प्राचीन राष्ट्र है. शहर में रहनेवाले, गांव, वनवासी और गिरिवासी सभी मूल निवासी हैं. उन्होंने कहा कि जैसे राष्ट्र और नेशन अलग है, उसी तरह धर्म और रिलीजन अलग है. आज आवश्यकता है इन सब बातों को हम साहित्य के विविध माध्यमों से समाज के सामने रखें. रंजन ने साहित्यकारों का आह्वान किया कि सभी भारतीय भाषाओं का उन्नयन कैसे हो, इस पर काम करें.
अधिवेशन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर ने कहा कि भारत की परंपरा व संस्कृति के अनुरूप साहित्य का लेखन होना चाहिए. साहित्य परिषद् साहित्य जगत का संपूर्ण वातावरण बदलने के लिए काम करती है. उन्होंने कहा कि हमें केवल साहित्यिक कार्यक्रम नहीं करना है. साहित्य में जो विकृति जानबूझकर लाई गई है उसके स्थान पर हमें साहित्य में सुकृति लानी है. पराड़कर ने कहा कि जब हम गहन अध्ययन करेंगे, तभी अच्छे साहित्य की रचना कर पाएंगे. परिषद् के राष्ट्रीय महामंत्री ऋषि कुमार मिश्र ने प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि विगत चार वर्ष परिषद् के विस्तार और साहित्यिक समृद्धि के लिए महत्त्वपूर्ण रहे. कोरोना के प्रकोप के कारण जब प्रत्यक्ष काम संभव नहीं था उस समय हमारी लोक भाषाएं, हमारी लोक यात्राएं और हमारे लोक देवी-देवताओं विषयों पर देश भर में 350 स्थान पर आभासी माध्यम से संगोष्ठियों का आयोजन हुआ. अधिवेशन में परिषद् के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ बलवंत भाई जानी, वरिष्ठ साहित्यकार देवेन्द्र चन्द्र दास, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो संजीव शर्मा, 'साहित्य परिक्रमा' के संपादक डॉ इन्दुशेखर तत्पुरुष, अभिराम भट्ट, डॉ राम सनेही लाल, डॉ जनार्दन यादव, डॉ आशा तिवारी सहित अनेक साहित्यकारों की सहभागिता उल्लेखनीय रही.