नई दिल्लीः राजधानी दिल्ली की एक शाम उन गज़लकारों और गायकों के नाम रही, जिन्होंने देश ही नहीं दुनिया भर में अपने शब्दों, सुर व आवाज का परचम फहरा दिया. साक्षी सिएट की अध्यक्ष डॉ. मृदुला टंडन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का नाम था 'अंदाज-ए-बयां'. पिछली सदी के मध्य में जब गजलों का जादू उतरने लगा था, उस दौरान कुछ शख्सियतों ने अपनी काबिलियत से इसे नई ऊंचाई दी और फिर लोगों की पसंद में शुमार कर दिया. गजल गायकी की बात जब भी उठेगी  तीन नाम ऐसे हैं जिनको हमेशा याद किया जाएगा, बेगम अख्तर, मेहदी हसन और जगजीत सिंह. ये वह महान कलाकार हैं, जिनकी आवाज के जादू व अथक प्रयासों से गजल को दोबारा से ज़िन्दगी मिली और लोकप्रियता भी. डॉ. मृदुला टंडन ने कहा, बेगम अख्तर उम्र भर गजलों के लिए समर्पित रहीं और गजलों को एक नई जिंदगी दी. मेहदी हसन ने गजलों को रागदारी में ढाला और गजल को मौसिकी के फलक के उरूज पर ले गए, और जगजीत सिंह जिन्होंने कॉलेज के छात्रों से लेकर समाज के लगभग हर तबके को गजल का दीवाना बनाया. 'अंदाज-ए-बयां' गजल की दुनिया की इन्हीं महान शख्सियतों को याद करने और श्रद्धांजलि देने का माध्यम है.
राजधानी के इंडिया हैबिटेट सेंटर के अमलतास ऑडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ गीतकार लक्ष्मी शंकर वाजपेयी और डॉ. मृदुला टंडन ने बातचीत के माध्यम से इन हस्तियों की जिंदगी से लोगों को रूबरू कराया. उन्होंने बताया कि किस तरह से इन शख्सियतों ने संघर्षों का सामना किया और अपना अलग मुकाम बनाया.  इसके बाद आज की तारीख में गजल गायकी का अनूठा सितारा कहे जाने वाले गीतकार और गायक शकील अहमद ने बेगम अख्तर, मेहदी हसन और जगजीत सिंह की गायी गजलों को तो अपनी आवाज दी ही, अपनी भी कुछ गज़लें सुनाईं. शकील अहमद द्वारा प्रस्तुत गजलों में 'दोस्त बन के दगा न देना..', 'उस दिलनशीं को..', 'प्यार करें दो शर्मीले दिल… आदि  शामिल थीं. कार्यक्रम के दौरान दर्शकों का उत्साह यह बताने के लिए काफी था कि राजधानी दिल्ली के लोगों के दिल में आज भी गजल की कितनी अहमियत है.