नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कच्छ में जुटी महिलाओं की एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए वेद और भारतीय दर्शन की सराहना की. उन्होंने कहा कि हमारे वेदों ने महिलाओं का आह्वान 'पुरन्धि: योषा' मंत्र से किया है. यानी, महिलाएं अपने नगर, अपने समाज की ज़िम्मेदारी संभालने में समर्थ हों, महिलाएं देश को नेतृत्व दें. नारी, नीति, निष्ठा, निर्णय शक्ति और नेतृत्व की प्रतिबिंब होती है. उसका प्रतिनिधित्व करती हैं. इसीलिए हमारे वेदों ने, हमारी परंपरा ने ये आवाहन किया है कि नारी सक्षम हों, समर्थ हों, और राष्ट्र को दिशा दें. हम लोग एक बात कभी-कभी बोलते हैं, नारी तू नारायणी! लेकिन और भी एक बात हमने सुनी होगी बड़ा ध्यान से सुनने जैसा है, हमारे यहां कहा जाता है, नर करणी करे तो नारायण हो जाये! यानी नर को नारायण होने के लिये कुछ करना पड़ेगा. नर करणी करे तो नारायण हो जाये! लेकिन नारी के लिये क्या कहा है, नारी तू नारायणी! अब देखिये कि कितना बड़ा फर्क है. उन्होंने कहा कि भारत, विश्व की ऐसी बौद्धिक परंपरा का वाहक है, जिसका अस्तित्व उसके दर्शन पर केन्द्रित रहा है. और इस दर्शन का आधार उसकी आध्यात्मिक चेतना रही है. और ये आध्यात्मिक चेतना उसकी नारी शक्ति पर केन्द्रित रही है. हमने सहर्ष ईश्वरीय सत्ता को भी नारी के रूप में स्थापित किया है. जब हम ईश्वरीय सत्ता की और ईश्वरीय सत्ताओं को स्त्री और पुरुष दोनों रूपों में देखते हैं, तो स्वभाव से ही, पहली प्राथमिकता नारी सत्ता को देते हैं. फिर चाहे वो सीता-राम हों, राधा-कृष्ण हों, गौरी-गणेश हों, या लक्ष्मी-नारायण हों! आप लोगों से बेहतर कौन हमारी इस परंपरा से परिचित होगा.
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे वेदों में घोषा, गोधा, अपाला और लोपमुद्रा, अनेक विदनाम हैं जो वैसे ही ऋषिकाएं रही हैं हमारे यहां. गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियों ने वेदान्त के शोध को दिशा दी है. उत्तर में मीराबाई से लेकर दक्षिण में संत अक्का महादेवी तक, भारत की देवियों ने भक्ति आंदोलन से लेकर ज्ञान दर्शन तक समाज में सुधार और परिवर्तन को स्वर दिया है. गुजरात और कच्छ की इस धरती पर भी सती तोरल, गंगा सती, सती लोयण, रामबाई, और लीरबाई ऐसी अनेक देवियों के नाम, आप सौराष्ट्र में जाओ, घर-घर घूमते हैं. इसी तरह आप हर राज्य में हर क्षेत्र में देखिए, इस देश में शायद ही ऐसा कोई गांव हो, शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो, जहां कोई न कोई ग्रामदेवी, कुलदेवी वहाँ की आस्था का केंद्र न हों! ये देवियाँ इस देश की उस नारी चेतना का प्रतीक हैं जिसने सनातन काल से हमारे समाज का सृजन किया है. इसी नारी चेतना ने आजादी के आंदोलन में भी देश में स्वतंत्रता की ज्वाला को प्रज्वलित रखा. और ये हम याद रखें कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हम याद करें और जब आजादी का अमृत महोत्सव हम मना रहे हैं तो भारत के आजादी के आंदोलन की पीठिका, उसको तैयार करने में भक्ति आंदोलन का बहुत बड़ा रोल था. प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि जो राष्ट्र इस धरती को मां स्वरूप मानता हो, वहां महिलाओं की प्रगति राष्ट्र के सशक्तीकरण को हमेशा बल देती है. आज देश की प्राथमिकता, महिलाओं का जीवन बेहतर बनाने पर है, आज देश की प्राथमिकता भारत की विकास यात्रा में महिलाओं की संपूर्ण भागीदारी में है और इसलिये हमारी माताओं-बहनों की मुश्किलें कम करने पर हम जोर दे रहे हैं.