फिजीः भारतीय मूल के लोगों के लिए फिजी कोई गैर देश नहीं है. यहां की माटी और साहित्य हिंदुस्तानी लेखन और जुबान की खूशबू से इस कदर भरा है कि उसकी गमक हम तक पहुंचना सहज है. फिर वहां की हिंदी ने फिजी बात के नाम से अपनी एक लोकप्रिय पहचान बना ली है. द यूनिवर्सिटी ऑफ फिजी के 'ग्लोबल गिरमिट इंस्टिट्यूट' ने 'अंतरराष्ट्रीय गिरमिट कॉन्फ्रेंस' का आयोजन किया तो स्थानीय विद्वानों और रचनाकारों के साथ ही दुनिया भर से प्रवासी भारतीय भी जुटे. इस आयोजन के दौरान भारतीय मूल के फिजी के प्रख्यात लेखक प्रो. सुब्रमनी की नवीन कृति 'फिजी माँ' का लोकार्पण संपन्न हुआ.
प्रवासी संसार के संपादक राकेश पाण्डेय भी इस कार्यक्रम में शरीक हुए. उनके मुताबिक प्रो. सुब्रमनी पुस्तक 'फीजी माँ' अपनी तरह की एक अलग कृति है. इस पुस्तक का लोकार्पण फिजी के नेता प्रतिपक्ष प्रोफेसर बीमान प्रसाद के करकमलों द्वारा हुआ. यह पुस्तक फीजी बात अर्थात फिजी हिंदी में लिखी गई है, जो सुल्तानपुर और फैज़ाबाद के आसपास की बोले जाने वाली अवधी का ही विस्तारित स्वरूप है. राकेश पाण्डेय ने इस कार्यक्रम में पुस्तक के कुछ अंशों का पाठ भी किया, और यह कहा कि दोनों ही देशवासियों के लिए यह एक बेहद रोचक, जानकारी भरा उपयोगी ग्रन्थ है और 1026 पृष्ठों में प्रोफेसर सुब्रमनी ने ऐसी जानकारियां दी हैं, जो पाठक को स्तब्ध करती हैं. प्रो. सुब्रमनी को अनन्त शुभकामनाएं.