गत दिनों वर्ष 2018 के ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा हुई। इस वर्ष यह पुरस्कार अंग्रेजी भाषा के सुप्रसिद्ध और लोकप्रिय लेखक अमिताव घोष को देने का निर्णय लिया गया है। ज्ञानपीठ द्वारा वर्ष 1965 से प्रत्येक वर्ष यह पुरस्कार दिया जा रहा है। भारतीय भाषाओं में लिखने वाला कोई भी लेखक इस पुरस्कार के योग्य हो सकता है। तीन साल पहले भारतीय ज्ञानपीठ ने अंग्रेजी को भी इसमें शामिल करने का प्रस्ताव अपनी प्रवर समिति से पास करवाया था। 1965 में पहली बार यह पुरस्कार मलयालम भाषा के लेखक जी शंकर कुरूप को दिया गया था। हिंदी में अबतक सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, अज्ञेय, महादेवी वर्मा, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा, कुँवर नारायण, अमरकांत श्रीलाल शुक्ल (संयुक्त), केदारनाथ सिंह और कृष्णा सोबती को यह सम्मान मिल चुका है। अंग्रेजी भाषा में यह पुरस्कार पाने वाले अमिताव घोष पहले लेखक बने हैं। अमेरिका में रह रहे अमिताव घोष अंग्रेजी के उन लेखकों में से हैं, जिनके लेखन ने भारतीय अंग्रेजी उपन्यासों की वैश्विक पहचान दी है। ऐतिहासिक विषयों में कल्पना का पुट डालकर लिखे जाने वाले अमिताव के उपन्यास भारत सहित दुनिया भर में धूम मचाते रहे हैं। 1986 में अमिताव घोष का पहला उपन्यास सर्किल ऑफ़ रीज़नप्रकाशित हुआ था। इस पहले ही उपन्यास ने उन्हें बड़ी पहचान दी। इसके बाददी कलकत्ता क्रोमोजोम’, ‘दी शैडो लाइन्स’, ‘इबिस ट्राइलॉजी : सी ऑफ़ पॉपिजआदि तमाम रचनाओं ने उन्हें शीर्ष भारतीय अंग्रेजी लेखकों के बीच बड़ा मुकाम प्रदान किया।

1988 में प्रकाशित उपन्यासदी शैडो लाइन्सके लिए घोष को वर्ष 1989 का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है। इसके अलावा भारत सरकार द्वारा 2007 में उन्हेंपद्म श्रीसम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है।

अमिताव घोष के उपन्यासों में इतिहास और कल्पना का ऐसा बेहतरीन घोल होता है, जो केवल रोचकता के साथ पाठक को कहानी से जोड़े रहता है, बल्कि प्रस्तुत विषय के संबंध में नयी जानकारी दृष्टि भी देता है। घोष अंग्रेजी के लेखक हैं, लेकिन अपने उपन्यासों में पात्रों के अनुरूप अन्य भाषाओं को भी उन्होंने जगह दी है। इस संबंध में उनके उपन्याससी ऑफ़ पॉपिजका उल्लेख समीचीन होगा जिसकी कथावस्तु का परिवेश भारत में औपनिवेशिक शासन के युग का है। इस उपन्यास की एक पात्र दिती भोजपुरी बोलती है। एक वेबपोर्टल पर प्रकाशित इस उपन्यास की समीक्षा में चर्चित लेखक प्रभात रंजन लिखते हैं, ‘भोजपुरी लोकगीतों का उपन्यास (सी ऑफ़ पॉपिज) में अच्छा उपयोग किया गया है, जैसे, आग मोर लागलबा, अरे सगरो बदनिया, टसमस चोली करे बढ़ेला जोबनवा या सखिया हो, सैंया मोरे पीसे मसाला, सखिया हो, बड़ा मीठा लागे मसाला। अपने पिछले उपन्यास हंग्री टाइड में भी अमिताव घोष ने बांग्ला भाषा का बहुत सुंदर उपयोग किया है। सी ऑफ पॉपीज हिन्दी और भोजपुरी मिश्रित अंग्रेजी भाषा के लिए भी याद किया जाएगा।उक्त बातों से जाहिर है कि गहन शोध से भरे रोचक कथानक की सुरुचिपूर्ण भाषा में प्रस्तुति अमिताव घोष के लेखन की ताकत  है। निश्चित ही अंग्रेजी भाषा को प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए अमिताव घोष उचित चयन हैं।

पीयूष द्विवेदी