लखनऊ: अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में आयोजित ‘किताब उत्सव‘ में एक सत्र महापंडित राहुल सांकृत्यायन की जीवनी पर था. इस सत्र में लेखक अशोक कुमार पाण्डेय से कवि विशाल श्रीवास्तव ने बातचीत की. पांडेय ने कहा कि मैंने सोचा था कि मैं बहुत आसानी से इसे लिख लूंगा पर इसे लिखते हुए मुझे समझ में आया कि असली राहुल तभी सामने आएंगे जब उनके बारे में सब तरफ फैली हुई बहुत सारी किंवदंतियों के पार न जाया जाए. इसलिए मैंने तटस्थ होकर यह देखने की कोशिश की कि आखिर राहुल जी थे क्या! इसीलिए इसमें उन पर देवत्व थोपने की कोई कोशिश नहीं की. राहुल सांकृत्यायन के जीवन में दो चीजें हैं जो कभी नहीं छूटती. पहली चीज है ज्ञान की तलाश और दूसरी चीज थी घुमक्कड़ी. मुझे नहीं लगता कि बीसवीं सदी में हिंदी की दुनिया में उनसे बड़ा कोई पढ़ाकू रहा होगा. लेकिन ये पढ़ाई उन्होंने बंद कमरे में बैठकर नहीं की.
लेखक ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन के भीतर कई तरह के अंतर्विरोध मौजूद रहे. उनके भीतर विचारों की एक खिचड़ी थी जो उन्हें कई बार गलत दिशाओं में ले जाती थी. उन्होंने कहा कि इस समय सांप्रदायिकता मेरे लिए बहुत बड़ी समस्या है. मेरे लिए ये बहुत बड़ा सवाल है कि भारतीय समाज में इतने बड़े पैमाने पर कैसे फैली. इस क्रम में कथित नवजागरण काल या हिंदी के बौद्धिक समाज का उर्दू को लेकर, दूसरे धर्मों को लेकर, स्त्रियों के मसले पर हिंदी समाज में एक चुप्पी की स्थिति रही है. राहुल पर लिखते हुए भी मेरे मन में ये सवाल रहे. मुझे लगा कि राहुल सांकृत्यायन पर लिखने के बहाने मैं उस दौर के बौद्धिक समाज को भी समझ सकूं. उन्होंने कहा कि राहुल किसान आंदोलन में जिस तरह से गए वह उनके बड़े मनुष्य का प्रमाण है. उनके जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो उन्हें बहुत ही संवेदनशील मनुष्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं. प्रो रमेश दीक्षित ने कहा कि लेखक इस किताब में बहुत सारी भ्रांतियों से टकराया है और बहुत सारी नई जानकारियों के साथ आया है. इस सत्र का संचालन सबाहत आफरीन ने किया. किताब उत्सव का आयोजन राजकमल प्रकाशन समूह ने किया है.