नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने प्रतिष्ठित नाटककार प्रताप सहगल के नाटक ‘रामानुजन’ का लोकार्पण कार्यक्रम आयोजित किया. प्रख्यात रंगकर्मी सतीश आनंद इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे. इस अवसर पर उन्होंने एक अच्छा नाटक लिखने के लिए प्रताप सहगल को बधाई दी. उन्होंने कहा कि उनकी पैनी दृष्टि रामानुजन के जीवन के उन पहलुओं पर पड़ती है, जिनके सहारे नाटक विमर्श की श्रेणी में आ खड़ा होता है. विमर्श की इस मौजूदगी के कारण उनके नाटक निर्देशकों के लिए चुनौती होते हैं. दर्शकों का ध्यान रखते हुए सहगल नाटक की रोचकता तो बनाए रखते हैं साथ ही विमर्श की डोर भी नहीं छोड़ते हैं.
अंत में उन्होंने कहा कि सहगल का नाट्य लेखन उत्तरोत्तर उन्नति को दर्शाता है जो बहुत अच्छी बात है. आशा है हिंदी में मौलिक नाटकों की कमी का रोना रोने वाले लोगों के लिए यह नाटक उपयोगी साबित होगा. इससे पहले प्रताप सहगल ने अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में बताते हुए हुए कहा कि मैं उन विषयों को ही नाटकों के लिए चुनता हूं जिन पर काम कम हुआ है या जो साहित्य में अनुपस्थित हैं. आगे उन्होंने कहा कि मेरी कोशिश होती है कि नाटक केवल सूचना मात्र देने वाला न हो बल्कि उसमें कोई विमर्श अवश्य रहे . इस नाटक में मैने प्रोफेसर हार्डी जो कि रामानुजन को कैंब्रिज ले गए थे और रामानुजन के सहारे राष्ट्रवाद के विचार को परखा है. मेरा राष्ट्रवाद सच्चा राष्ट्र प्रेम है न कि कोई राजनीतिक राष्ट्रवाद. कार्यक्रम का संचालन उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया.