लखनऊ: स्थानीय अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में आयोजित ‘किताब उत्सव‘ में बिहार की पहली महिला आईपीएस अधिकारी मंजरी जारुहार की आत्मकथा ‘मैडम सर‘ पर केंद्रित एक सत्र का आयोजन हुआ. इस सत्र में साहित्यकार बीएसएम मूर्ति और कथाकार तथा पूर्व आईपीएस अधिकारी शैलेंद्र सागर ने मंजरी जारुहार से उनकी किताब पर बातचीत की. इस दौरान मंजरी जारुहार ने कहा कि जब मेरा आईपीएस में सिलेक्शन हुआ तो घर वालों को तैयार करने में मुश्किल आई. उनको लग रहा था कि मैं पुलिस में जाकर क्या करूंगी. बाद में जब मैंने ज्वाइन कर लिया और बिहार में ज्वाइन करने के लिए पहुंची तो डीजी ने मेरे सैल्यूट का जवाब तक नहीं दिया. बाद में मुझे पटना में ही ज्वाइन कराया गया कि पटना सेफ रहेगा. मूर्ति ने ‘मैडम सर‘ पर अपनी राय देते हुए कहा कि यह किताब बहुत रोचक और पठनीय है. मंजरी ने यह जानते हुए भारतीय पुलिस सेवा में प्रवेश किया कि उनकी राह कितनी कठिन होगी.
मूर्ति ने कहा कि बिहार पुलिस में पहली बार एक महिला अधिकारी का प्रवेश एक क्रांतिकारी घटना थी. यह एक कठिन सपने के पूरा होने जैसा था. ‘मैडम सर‘ को पढ़ना भारतीय पुलिस सेवा को समझने के लिहाज से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. इसलिए भी कि ये उस दुनिया में रहते हुए, उसे जीते हुए और उससे रोज-ब-रोज टकराते हुए लिखी गई है. मंजरी जारूहार ने कहा कि रिटायर होने के तेरह साल बाद मैंने ये किताब लिखी. मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं कभी किताब लिखूंगी इसलिए कभी कोई नोट्स नहीं रखे. लिखते हुए मैं पूरी तरह से स्मृतियों पर आश्रित रही. उसे लिखते हुए मुझे वो तमाम केस याद आए जिनमें मैं बतौर अधिकारी जुड़ी रही थी. जैसे भागलपुर का आंख फोड़ने वाला कांड. यह कानून के नजरिए से भयावह केस था. इस कांड पर जो भी अधिकारी काम कर रहे थे सभी एकदम नौजवान अधिकारी थी. मैं उन पर चार्जशीट लगाते हुए शुरुआत में दुविधा में रही पर जल्दी ही इस नतीजे पर पहुंची कि कानून कभी भी इस तरह की चीजों को स्वीकार नहीं कर सकता. सत्र का संचालन फ़रज़ाना महदी के किया. किताब उत्सव का आयोजन राजकमल प्रकाशन समूह ने किया है.