विज्ञापन की सपनीली दुनिया
ब्रांड पब्लिसिटी से आगे बढ़कर समाज में सार्थक बदलाव भी ला रहे विज्ञापन
सबहेड- मकैन वर्ल्ड ग्रुप इंडिया के सीओओ जितेंद्र डबास ने विज्ञापन की दुनिया की सपनीले, चमकीली और चुनौतियों से भरी दुनिया की कराई सैर
सुमन सेमवाल, जागरण
देहरादून: विज्ञापन की दुनिया जितनी सपनीली और चमकीली है, उतनी ही चुनौतियों से भरी भी है। यह चुनौती है समाजशास्त्र को पढ़ने की, समझने की और उसके मुताबिक विज्ञापनों को गढ़ने की। जहां विज्ञापन के मायने, उनकी भाषा और प्रस्तुति उम्र, पेशा व भाषा के साथ बदलती रहती है। जब कोई विज्ञापन इन कसौटियों पर खरा उतरता है, तभी उसकी स्वीकार्यता बढ़ती है और उसके संदेश का असर व्यापक होता है। यह बात रविवार को जागरण संवादी कार्यक्रम के दूसरे दिन ‘विज्ञापन की सपनीली दुनिया‘ सत्र में मकैन वर्ल्ड ग्रुप इंडिया के चीफ आपरेटिंग आफिसर (सीओओ) जितेंद्र डबास ने कही। सत्र का संचालन करते हुए दैनिक जागरण के महाप्रबंधक प्रशांत कश्यप ने विज्ञापन की दुनिया के बड़े नाम जितेंद्र डबास से विज्ञापन जगत के तमाम पहलुओं पर सीधे सवाल किए और उनका जवाब सीओओ जितेंद्र डबास ने बेबाकी से दिया।
एड एक्सपर्ट जितेंद्र डबास ने कहा कि आज विज्ञापन सिर्फ किसी ब्रांड का प्रमोशन ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि वह समाज में सार्थक बदलाव लाने का प्रयास भी कर रहे हैं। उन्होंने वाशिंग मशीन के एक एड ‘शेयर हर वर्क लोड‘ का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें वाशिंग मशीन के साथ पुरुष को दिखाया गया है। इसके दो मायने हैं और यह समाज को एक सार्थक और गहरा संदेश देता है। विज्ञापन तैयार करने में कंपनियों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। विज्ञापन तैयार करने के लिए टारगेट वर्ग की प्रकृति और पसंद को पहले खुद महसूस करना पड़ता है।
एयर इंडिया के पुनर्गठन के विज्ञापन को करना पड़ा अथक प्रयास
विज्ञापन की चुनौतियों के प्रश्न का उत्तर देते हुए जितेंद्र डबास ने एयर इंडिया की रीस्ट्रक्चरिंग (पुनर्गठन) के लिए तैयार किए गए विज्ञापन का उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि एविएशन कंपनियां यात्रियों की सुरक्षा के लिए जो अनाउंसमेंट करती हैं, उसे सुनकर यात्री बोर हो चुके हैं। लिहाजा, एयर इंडिया के विज्ञापन के लिए ग्रुप के सीईओ/चेयरमैन प्रह्लाद कक्कड़ और टीम के सदस्यों के साथ अथक प्रयास किए गए। विज्ञापन में अलग-अलग नृत्यों को प्रस्तुत किया गया है, लेकिन इनमें कोई स्टेप तकनीकी रूप से गलत न हो, इसके लिए संबंधित नृत्य शैली के विशेषज्ञों को भी जोड़ा गया। इसी तरह की चुनौतियों से पार पाते हुए कोई विज्ञापन अपना स्पष्ट संदेश दे पाता है। यह विज्ञापन एयर इंडिया के प्लेटफार्म पर उतरने से पहले ही इंटरनेट मीडिया पर लाखों व्यूज प्राप्त कर चुका था।
हिंदी भाषी हैं तो विज्ञापन की दुनिया आपकी है
जितेंद्र डबास ने विज्ञापन की दुनिया को पेशे के रूप में अपनाने ही चाहत रखने वाले युवाओं का भी मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि जागरण संवादी का यह मंच अभिव्यक्ति को जाहिर करने का भी है। अभिव्यक्ति के लिए हिंदी से बेहतर भाषा क्या हो सकती है। विज्ञापन के साथ भी यही बात लागू होती है। इसमें अभिव्यक्ति के साथ स्वीकार्यता पर भी ध्यान देना होता है। यदि आप हिंदी भाषा में मजबूत हैं तो इस क्षेत्र में आप बुलंदियां छू सकते हैं।
विज्ञापन में प्रभावित करने की ताकत, जवाबदेही भी है
विज्ञापन की सपनीली दुनिया के सत्र में प्रश्न-उत्तर का लंबा क्रम चला। विज्ञापनों की जवाबदेही पर बात आई तो जितेंद्र डबास ने कहा कि विज्ञापनों में इंफ्लूएंस (प्रभावित) करने की ताकत है तो भ्रम न फैलाने की जिम्मेदारी भी है। आज प्रतिष्ठित कंपनियां इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए तमाम मानकों का पालन कर रही हैं। कई विज्ञापनों में इसे दिखाए जाने को लेकर उम्र की सीमा का भी जिक्र किया जाता है।
एड एक्सपर्ट ने विज्ञापनों की दशा-दिशा पर यह भी कहा
–एआइ के प्रयोग से विज्ञापनों और उसकी रचनात्मकता को लेकर चुनौतियां जरूर बढ़ी हैं, लेकिन इसका समाधान भी यही तकनीक मुहैया कराएगी।
–विज्ञापनों को स्किप करने की चुनौती भी समानांतर रूप से खड़ी है। चंद सेकेंड की अवधि में ही ऐसा दिखाने का दबाव रहता है कि लोग स्किप न करने के लिए बाध्य हो सकें।
–अब झांसा देने वाले विज्ञापनों पर नकेल कसने के लिए नियामक बाडी के कई विकल्प हैं। लिहाजा, विज्ञापन की सार्थकता पर काम करना जरूरी है।
–सार्थक विज्ञापन आज भी टिके हुए हैं और नए-नए रूप में ऐसे आइडिया को निरंतर प्रयोग में लाया जा रहा है।
–आज के तकनीकी युग में विज्ञापन के लिए आवश्यक रचनात्मकता को मंच देने के लिए इंटरनेट मीडिया के तमाम प्लेटफार्म सुलभ हुए हैं।