पांचवां सत्र- पौराणिक पात्र नया कहन
पूर्वजों को मिथ्या बताकर सनातनी परंपरा को झुठलाने की साजिश
संवाद के प्रमुख बिंदु
– हिंदू पंचांग चार युगों के एक कल्प और फिर नए युग की शुरुआत की धारणा का करता है प्रतिपादन, जबकि पश्चिम की काल गणना सीमित
– हम दुनिया के इकलौते ऐसी मान्यता को मानने वाले लोग हैं, जिन्होंने हर चीज में भगवान को ढूंढ़ा
– भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु और न से नीर का सूक्ष्म रूप है भगवान, पंच तत्वों को वश में करने वाला भगवान
– हमारी दशावतार की समृद्ध ज्ञान परंपरा को डार्विन का विकास सिद्धांत पढ़ाकर पश्चिम ने अपनी लाइन को लंबा बनाने का किया प्रयास
– शास्त्र से मर्यादा कायम होती और शस्त्र से बनती है व्यवस्था, इसलिए देवी देवतओं ने धारण किए हैं अस्त्र-शस्त्र
दुर्गा नौटियाल, जागरण
देहरादून: सनातन धर्म सबसे पुरातन है, लेकिन सनातनी मान्यताओं को प्रामाणिकता के अभाव में तथाकथित बुद्धिजीवी झुठलाने पर तुले रहते हैं। यह प्रचलन-सा बन गया है कि, धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक पात्रों को झुठलाने के लिए हिंदू पूर्वजों को मिथ्या बता दो। जबकि, हकीकत यह है कि यह घटनाएं इतनी असाधारण और बड़ी थीं, जिन्होंने कथाकार, साहित्यकार और कवियों को लिखने पर मजबूर कर दिया। हमारी पौराणिक मान्यताओं से जुड़े प्रमाण जब रेडियो पर आकाशावाणी के रूप में सामने आती है तो, कंस के लिए हुई आकाशवाणी का मिथक टूट जाता है। दूरदर्शन जब सजीव प्रसारण करता है तो महाभारत में धृतराष्ट्र को युद्ध का वृतांत सुनाने वाले संजय की दूरदृष्टि को प्रमाणिकता मिल जाती है।
यह विमर्श जागरण संवादी के पांचवें सत्र में प्रसिद्ध साहित्यकार अक्षत गुप्ता ने रखा। पौराणिक पात्र नया कहन विषय पर दैनिक जागरण के महाप्रबंधक प्रशांत कश्यप के साथ प्रसिद्ध साहित्यकार अक्षत गुप्ता ने सनातन धर्म, परंपरा, ऐतिहासिक पात्रों, उनकी प्रासंगिकता व वैज्ञानिकता पर बेबाक संवाद किया। उन्होंने पश्चिमी सभ्यता की काल गणना और हिंदू पंचांग को रेखांकित करते हुए कहा कि पश्चिम की काल गणना जहां एक निश्चित अवधि पर आकर ठहर जाती है, वहीं हमारा पंचांग चार युगों के एक कल्प और फिर नए युग की शुरुआत जो अनंत है, का प्रतिपादन करता है। हम सब समय की इसी गति के साथ बह रहे हैं। हम दुनिया के इकलौते ऐसी मान्यता को मानने वाले हैं, जिन्होंने हर चीज में भगवान को ढूंढ़ा है। यही वजह है कि दुनिया के हर बड़े पटल पर हम हिंदुस्तानी बैठे हैं। अक्षत ने ईश्वरीय शक्ति को परिभाषित करते हुए कहा कि भगवान कोई एक क्षण में गढ़ा हुआ नाम नहीं है। बल्कि भ से भूमि, ग से गगन, व से वायु और न से नीर का का सूक्ष्म रूप है। यानी इन पांच तत्वों को अपने वश में करने वाला ही भगवान है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी सोच जब हमारे ज्ञान और विज्ञान का मुकाबला नहीं कर सकी तो उन्होंने हमें ए-बी-सी-डी पढ़ाना शुरू किया। हमारी दशावतार की समृद्ध ज्ञान परंपरा को डार्विन का विकास सिद्धांत पढ़ाकर अपनी लाइन को लंबा बनाने का प्रयास किया गया। उन्होंने दशावतार की व्याख्या करते हुए पृथ्वी पर जीवन के विकास की यात्रा को वैज्ञानिक ढंग से समझाने का प्रयास किया।
सत्र में देवी-देवताओं के हाथों में अस्त्र, शस्त्रों और आयुध की परिकल्पना का जवाब देते हुए कहा कि शास्त्र से मर्यादा तो कायम हो जाती है, लेकिन व्यवस्था तय करने के लिए शस्त्र की जरूरत होती है। उन्होंने नागा साधुओं का धर्म का रक्षक बताते हुए कहा कि धर्म को बचाने के लिए शस्त्र उठाना ही पड़ता है। एक प्रश्न पर उन्होंने हिंदू मान्यता के सप्त चिरंजीवियों की व्याख्या की। कहा कि यह चिरंजीवी भी एक कल्प तक ही चिरंजीवी हैं। कल्कि अवतार में यह चिरंजीवी, कलियुग के विनाश में साथ देंगे और इसके पश्चात मोक्ष को प्राप्त होंगे।