लखनऊ: राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में आयोजित ‘किताब उत्सव‘ के दौरान अखिलेश के उपन्यास ‘निर्वासन‘ पर केंद्रित चुनिंदा आलेखों की एक पुस्तक का लोकार्पण हुआ. इस किताब का संपादन युवा कथाकार-आलोचक राजीव कुमार ने किया है. कार्यक्रम में सिद्ध आलोचक अवधेश मिश्र ने कहा कि ‘निर्वासन‘ उपन्यास को प्रकाशित हुए दस साल बीत चुके हैं. इस बीच अपने समय, समाज, संस्कृति और राजनीति की सटीक पहचान करने वाले इस उपन्यास का महत्त्व बढ़ता ही गया है. इसी क्रम में कवि आलोचक अनिल त्रिपाठी ने कहा कि इस उपन्यास में वह सारी बातें सत्य साबित हो रही हैं, जिनकी तरफ लेखक अखिलेश ने इशारा किया था. इन दस सालों में यह उपन्यास एक महाआख्यान बनता गया है.
वीरेंद्र यादव ने कहा कि हमारे समय और समाज में व्याप्त यह निर्वासन, जिसकी चर्चा यह उपन्यास करता है, कई स्तरों पर घटित हो रहा है. यहां भौतिक निर्वासन है जहां पर लोग रोजी रोटी की तलाश में गिरमिटिया मजदूर बन कर दुनिया के दूसरे कोनों में जा रहे हैं, तो दूसरा निर्वासन इस व्यवस्था का है जहां जातिगत शोषण के चक्र में फंसकर लोग अपने आप से ही निर्वासित हो रहे हैं. तीसरी तरफ भौतिकता का एक चक्रव्यूह है जिसके मायावी चक्र में फंसकर लोग आत्म के स्तर पर निर्वासित हो रहे हैं. जाहिर है कि इन सभी निर्वासनों के साथ एक विडंबना भी लगातार बनी हुई है. इस सत्र का संचालन युवा कथाकार सबाहत आफरीन ने किया.