शिमला: “भारत के इतिहास को समझने के लिए गांव के इतिहास, लोक संस्कृति, परंपराओं, जनजीवन और सामाजिक व्यवस्थाओं को समझना बहुत जरूरी है.” यह बात स्थानीय गेयटी थियेटर सभागार में ठाकुर राम सिंह इतिहास शोध संस्थान नेरी हमीरपुर द्वारा दो खंडों में प्रकाशित पुस्तक ‘हिमाचल प्रदेश के गांव का इतिहास’ का लोकार्पण करते हुए शोध संस्थान के निदेशक एवं मार्गदर्शन डा चेतराम गर्ग ने कही. उन्होंने कि भारत का अधिकांश इतिहास आक्रमणकारी अंग्रेजों और मुगलों द्वारा लिखा गया है. उन्होंने फूट डालो और राज करो इस कूटनीति के अंतर्गत भारत के वास्तविक इतिहास को तोड़ मरोड़ कर अपनी सुविधा के अनुसार पेश किया और भारतीय इतिहास के प्रति हीन भावना दिखलाई. यही विकृत इतिहास भारत वर्ष के शिक्षण संस्थानों में पढ़ा-पढ़ाया जा रहा है. अतः ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित विसंगतियों के चलते इसका अपेक्षित संशोधन एवं पुनर्लेखन जरूरी है. अच्छी बात है कि ‘गांव का इतिहास’ भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है. गर्ग ने कहा कि आक्रमणकारियों को महान बताना और भारतीय महापुरुषों तथा लोगों के योगदान को नजरअंदाज किया जाना, इसी षड्यंत्र का हिस्सा है. इसलिए भारत के इतिहास के पुनर्लेखन के लिए गांव के इतिहास को लिखा जाना जरूरी है. गांव का सच्चा इतिहास सामने आने पर ही भारत के इतिहास को सत्य घटनाओं के आधार पर प्रामाणिक रूप से लिखा जा सकता है, ताकि आने वाली पीढ़ी को अपने देश के इतिहास, लोक संस्कृति और परंपराओं को ठीक प्रकार से जानने का अवसर मिल सके और वे उसे पर गौरव कर सकें.
कार्यक्रम के अध्यक्ष समाजसेवी राजकुमार वर्मा थे. उन्होंने कहा कि शोध संस्थान नेरी द्वारा अपनी स्थापना के बहुत कम वर्षों में साहित्य के विभिन्न विषयों पर आधारित सेमिनार, कार्यशालाएं परिचर्चाएं आयोजित की गई हैं और इन कार्यक्रमों के माध्यम से जो शोधपत्र प्राप्त हुए हैं उन्हें निरंतर प्रकाशित किया जा रहा है. आज भी आजादी की अभिव्यक्ति के नाम पर देश को तोड़ने और देश विरोधी ताकतों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचाए जा रहे हैं परंतु भारत की राष्ट्रवादी ताकतों की मजबूती के सामने देश को कमजोर करने का एजेंडा टिक नहीं सकता. सरदार पटेल विश्वविद्यालय मंडी के पूर्व कुलपति उप कुलपति एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर डीडी शर्मा ने कहा किसी भी देश का इतिहास उसकी सांस्कृतिक विरासत समाज व्यवस्था और नागरिकों के लिए गौरव का विषय होता है परंतु उसमें होने वाली विकृतियों उसे कमजोर कर देती हैं. इसलिए इतिहास का प्रामाणिक संशोधन और उसका अगली पीडिया के लिए स्थानांतरण अत्यंत आवश्यक है. समारोह के दौरान गांव का इतिहास पुस्तक की समीक्षा करते हुए प्रोफेसर ओम प्रकाश शर्मा ने बताया कि गांव का इतिहास पुस्तकों में चयनित गांव के इतिहास, संस्कृति मेले, पर्व, त्यौहार, जनजीवन, सामाजिक व्यवस्था, रीति रिवाज, लोकगीत, लोक कथाएं, देव परंपरा आदि विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया गया है. इस दृष्टि से एक ही आलेख में इतिहास और लोक संस्कृति की जानकारी पुस्तक की विशेषता है. हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में कार्यरत प्रोफेसर अंकुश भारद्वाज ने जानकारी साझा करते हुए बताया कि गांव का इतिहास शीर्षक से प्रकाशित इन दो पुस्तकों का संपादन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में कार्यरत प्रोफेसर अंकुश भारद्वाज द्वारा किया गया है. प्रत्येक खंड में छह गांव का इतिहास लोक संस्कृति जनजीवन, मेला, पर्व, त्यौहार इत्यादि विभिन्न विषयों का प्रामाणिक वर्णन है. ये आलेख डा ओम प्रकाश शर्मा, डा विवेक शर्मा, डा रोशनी देवी, राजेंद्र शर्मा, डा सूरत ठाकुर, महेंद्र सिंह, मेहर चंद, दामोदर, बरूराम ठाकुर, डा ओम दत्त सरोच, राजेश्वर करियप्पा द्वारा लिखे गए हैं.