आइडिया आफ इंडिया
हिंदी हैं हम, यही है आइडिया आफ इंडिया
संवाद के प्रमुख बिंदु
–सनातन अवधारणा में भारतीयता के साथ बात करेंगे तो सनातन को भी समझेंगे
–भारत की समृद्धि संस्कृति से जुड़ी है और संस्कृति देती है संरक्षण का संदेश
–अब भारत से विश्वभर में चलेगी हवा, मिट्टी और पानी के संरक्षण की मुहिम
–नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, भारत को उसके गौरव की ओर लौटाने का है प्रयास
केदार दत्त, जागरण
देहरादून: देश को देखने की कोशिश करें तो एक शब्द है विकास, जिसका शास्त्रों में उल्लेख नहीं मिलता। तथाकथित विकास के लिए हमने पाश्चात्य माडल अपनाया। नतीजा शहर आगे बढ़े और गांव पीछे छूट गए। भारत की समृद्धि संस्कृति से जुड़ी है, जो संरक्षण का संदेश देती है। भारत अजर, अमर अविनाशी है। हिंदी हैं हम, यही आइडिया आफ इंडिया है। जो हुआ, उसे पीछे छोड़ते हुए नए सिरे से पहल कर आगे बढ़ा जाए, जिसमें भारतीयता समाहित हो। जागरण संवादी के मंच पर अंतिम दिन आइडिया आफ इंडिया सत्र में यह बातें निकलकर सामने आईं। मंच पर चर्चा के लिए मौजूद थे पर्यावरणविद पद्मभूषण डा अनिल प्रकाश जोशी, लेखक एवं पत्रकार तरुण विजय, लेखक एवं पत्रकार रसीद किदवई व लेखक यतींद्र मिश्र और उनसे संवाद किया पत्रकार रविद्र बड़थ्वाल ने। चर्चा छिड़ी तो पुरातन काल से लेकर वर्तमान भारत तक के सफर पर बात हुई। पूर्व में हुई त्रुटियों को रेखांकित कर इनसे सबक लेते हुए सामूहिक प्रयासों से आगे बढ़ने पर जोर दिया गया। यह भी कहा गया कि बदली परिस्थितियों में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत के गौरव को उसके गौरव की ओर लौटाने का प्रयास है।
समृद्धि कैसे आएगी, विश्व को बता सकता है भारत: डा जोशी
पद्मभूषण पर्यावरणविद् डा जोशी ने कहा कि तथाकथित विकास के माडल को अपनाने का नतीजा सभी देख रहे हैं कि हम कहां जा रहे हैं। वह कहते हैं कि सुविधा भी जरूरी थी, इसलिए पश्चिम के विकास माडल की तरफ बढ़ा गया, लेकिन यह तथाकथित विकास कब विनाशी होने लगा, पता ही नहीं चला। विश्व आज बड़े संकट से त्रस्त है, जो हवा मिट्टी व पानी से जुड़ा है। औद्योगिक क्रांति के बाद अब पारिस्थितिकी का प्रश्न है। इसकी हवा अब पूरब यानी भारत से चलेगी। भारत के नजरिये से देखें तो शास्त्रों में विकास नहीं, समृद्धि का उल्लेख है। समृद्धि संस्कृति से जुड़ी है, जाे संरक्षण का भाव लिए है। शास्त्रों में हवा मिटटी व पानी के संरक्षण के बेहतर रास्ते बताए गए हैं। भारत की बड़ी पहचान तथाकथित विकास नहीं, बल्कि संपूर्णता लिए हाेगी।
आपातकाल में हुआ संविधान का दुरुपयोग: किदवई
लेखक एवं पत्रकार रसीद किदवई ने कहा कि हिंदी हैं हम, हिंदुस्तानी होना यही आयडिया आफ इंडिया है। तमाम नेता, विचारक व सुधारकों ने इसे पेश किया। विविधताओं के बावजूद हमारा देश एक है। हम एक थे, एक हैं और एक रहेंगे। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि आपातकाल दुर्भाग्यपूर्ण समय था और संविधान का दुरुपयोग हुआ। इतिहास के झरोखे में जाएं तो इंडिया इंदिरा भी हुआ, लेकिन बाद में इंदिरा जी हार गईं। उन्होंने यह भी कहा कि आज पूरे विश्व में प्रतिस्पर्धा है। मौलिक सोच स्वागतयोग्य है। इसमें पूरब-पश्चिम का टकराव नहीं है। हम सभी एक रहना चाहते हैं और कोई इसे तोड़ नहीं सकता। वह यह भी कहते हैं कि हमें स्वयं के पुरुषार्थ से देश को नई ऊंचाई पर ले जाना होगा।
भारत की आत्मा है सनातन : तरुण
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लेकर पूछे गए प्रश्न पर लेखक एवं पत्रकार तरुण विजय ने कहा कि जिसने भारत को टुकडे़-टुकड़े के रूप में देखा, भारतीयता व सनातन को पहचानने से इनकार कर दिया, जिन्होंने ये नहीं पहचाना कि राष्ट्र एक आत्मा होती है, उस व्यक्ति से आयडिया सुनना अजीब लगता है। उन्होंने कहा कि भारत को गलत ढंग से परिभाषित करने वाले इसे नहीं समझ सकते। वह कहते हैं कि भारत अजर, अमर व अविनाशी है। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य की नकल से विकास विनाश में बदल गया। उन्होंने वामपंथियों पर भी निशाना साधा। साथ ही भारतीय संस्कृति और सनातन को रेखांकित किया और कहा कि विकास का रास्ता भी सनातन से निकलेगा। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत को उसका गौरव लौटाने का प्रयास है।
भारतीयता की बात को पिछड़ापन न माना जाए: मिश्र
लेखक यतींद्र मिश्र कहते हैं कि भारत की अवधारणा हजारों वर्ष से है। रामायण व महाभारत काल समेत विभिन्न कालखंडों को रेखांकित किया। साथ ही प्रश्न उठाते हैं कि आजादी के बाद शिक्षा नीति में कितना काम हुआ, संस्कृति पर कितनी बात हुई, नैतिक मूल्यों को क्यों नजरअंदाज किया गया। संस्कृत में बात करने को पिछ़ड़ा और अंग्रेजी को अभिजात्य माना गया। कहा कि भारत को समझने के लिए गुुरुकुल परंपरा जैसी अवधारणा को देखने की जरूरत है। जब हम सनातन अवधारणा को भारतीयता के जोड़कर देखेंगे, तभी सनातन को भी समझेंगे।