पटना: बिहार का प्रतिष्ठित बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान इस बार तीन कथाकार और तीन कवियों को प्रदान किया गया. पटना में आयोजित सम्मान समारोह में कथाकार पूनम सिंह, रामदेव सिंह, रतन वर्मा और कवि डा विनय कुमार, अनिल विभाकर तथा विनय सौरभ को यह सम्मान प्रदान किया गया. इस दौरान आयोजित परिचर्चा में तुलसी, निराला, शुक्ल को हिंदूवादी बताने पर वक्ताओं के बीच तीखी बहस भी हो गई. याद रहे कि कोविड महामारी के चलते पिछले कुछ वर्ष से ये पुरस्कार नहीं दिए जा सके थे, इसलिए इस बार वर्ष 2018 से 2023 के लिए पुरस्कार प्रदान किए गए. हिंदी के प्रसिद्ध कवि आलोक धन्वा, प्रेम कुमार मणि, ऋषिकेश सुलभ, कथाकार रामधारी सिंह दिवाकर और अवधेश प्रीत ने सम्मानित रचनाकारों को ये पुरस्कार प्रदान किए. सम्मान समारोह में आलोचक रवि भूषण, कवि रंजीत वर्मा और कवि विमल कुमार ने अपने विचार व्यक्त किए. पुरस्कार समारोह के पश्चात रविभूषण की नई किताब का लोकार्पण हुआ और प्रेम कुमार मणि ने पुस्तक पर लंबा वक्तव्य दिया.
इसके पश्चात दूसरे सत्र में चर्चा कार्यक्रम में रंजीत वर्मा द्वारा आज रचे जा रहे साहित्य को हिंदू साहित्य बता दिए जाने पर गंभीर प्रतिक्रिया के बीच उन्होंने तुलसी, निराला, रामचन्द्र शुक्ल को हिंदूवादी घोषित कर दिया. वर्मा यहीं पर नहीं रुके, उन्होंने भारतेंदु, रामचन्द्र शुक्ल और निराला को मुस्लिम विरोधी भी बता दिया. इस पर कवि आलोक धन्वा तीखा प्रतिवाद जताया. विमल कुमार ने भी रंजीत वर्मा के तर्कों का खंडन किया और कहा कि हिंदी-हिंदुस्तानी विवाद में अधिकतर हिंदी लेखक हिंदी के समर्थक थे क्योंकि अंग्रेज सरकार ने उर्दू को अधिक बढ़ावा दिया. उन्होंने कहा कि 1910 तक हिंदी से अधिक उर्दू की किताबें छपती थीं और हिंदी को तो भाषा का दर्जा भी नहीं मिला था. हिंदी को 140 साल तक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ा था. रविभूषण ने कहा कि भारत में हिंदू-मुसलमानों को आपस में भिड़ाने के लिए हिंदी-उर्दू का विवाद अकादमिक जगत में उठाया गया और यह अमरीकी साज़िश है. उन्होंने कहा कि साहित्य को अतिवादी दृष्टिकोण से नहीं समझा जा सकता बल्कि एक संतुलित दृष्टि अपनाई जानी चाहिए.